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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कारादि क्वाथ [६६१] कुलत्थादिक्वाथः (३) (बृ. नि. र. कासे) कुलत्थं कण्टकारी च तथा ब्राह्रायष्टिका । शुण्ठीसुरभिसंयुक्तः कासश्वासज्वरापहः ॥ कुलथी, कटेली, भारंगी, सोंठ और तुलसी । इनका क्वाथ खांसी, श्वास और ज्वर का नाश करता है । [६६२] कुलत्थादिक्वाथः ( ४ ) (वृ. नि. र; यो. र; हिक्का ) कुलत्थय वकोलाम्बुदशमूलबलाजलम् । पानार्थं कल्पयेत्कास हिक्काश्वासप्रशांतये ॥ खांसी, श्वास और हिंचकीकी शांति के लिये कुलथी, जौ, बेर, सुगन्धबाला, दशमूल और खरैटी का क्वाथ पिलाना चाहिये । | [६६३] कुष्ठप्न महाकषायः (च. सं. सू. अ. ४) स्वदिराभयामलक हरिद्रारुष्कर सप्तपर्णारग्वधकरवीरविडंगजातिप्रवाला इति दशेमानि कुष्ठघ्नानि भवन्ति । खैर, हैड़, आमला, हल्दी, भिलावा, सतौना, अमलतास, करवीर (कनैर), बायबिडंग और चमेली के पत्ते । यह चीजें कुष्ट नाशक हैं। [६६४] कुष्ठादिक्वाथः (बृ. नि. र. ज्वरे ) कुष्ठमिन्द्रवयं मूर्वा पटोलेनापि साधितम् । पीवेन्मरीच संयुक्तं सक्षौद्रं कफजे ज्यरे ॥ 1 कूठ, इन्द्रजौ, मूर्वा और पटोलपत्र । इनके क्वाथ में शहद और काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पिलानेसे कफज ज्वर का नाश होता है । [६६५] कूष्माण्डादियोगः (वृ, नि. र; यो. र; व. से; अपस्मा . ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०९ ) कुष्मांड कपीडोत्थेन रसेन परिपेषितम् । अपस्मारविनाशाय यष्टयाह्न स पिबेत्यहम् || कुम्हेड़े (पेट) के रस में मुल्हैटीको पीसकर तीन दिन तक पीने से अपस्मार का नाश होता है । [६६६] कृमिघ्न महाकषायः (च. सं. सु. अ. ४) अक्षी मरिचगण्डीरकेवूकविडङ्गनिर्गुडीकिfunी वदंष्ट्रा वृषपर्णिका खुपर्णिका । इति दशेमानिकृमिघ्नानि भवन्ति ॥ सौंजना, कालीमिर्च, गण्डीर ( मजीठ ), केवूक बायबिडंग, संभालु, चिरचिटा, गोखरू, वृषपर्णी और मूषापर्णी । यह दश चीजें कृमिघ्न हैं। [६६७] कृमिशत्रवादिक्वाथः (वृ. नि. र. अति.) कृमिशत्रु वचाबिल्वपेशीधान्याककट्फलम् । एषां कथं भिषग् दद्यादतीसारे बलासजे || बायबिडंग, बच, बेलगिरी, धनिया और कायफल | इनका काथ कफज अतिसारका नाश करता है । [६६८] केतकी मूलयोगः (२. २. । मेहे) त्रिनिष्कं केतकी मूलं घृष्ट्वा जलेन पाययेत् । जयन्त्या वा जयायुक्तं मेहं हन्ति समुत्कटम् ॥ १ तोला केतकी की जड़को जयन्ती या जया (अरणी ) के साथ पानीमें पीसकर सेवन करनेसे भयंकर प्रमेहका नाश होता है । [६६९] कोकिलाक्षादिः (यो. र. 1 वा. र. ) कोकिलाक्षामृताक्कार्थं पिबेत्कोष्णं यथा बलम् । पथ्यभोजी त्रिसप्ताहान्मुच्यते वातशोणितात् ॥ बलानुसार तीन सप्ताह तक तालमखाना और गिलोयका किंचितोष्ण काथ पीने और पथ्य पालन करनेसे वातरक्तका नाश होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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