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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१८६) भारत-भैषज्य-रत्नाकर - समातुलुङ्गीलवणोत्तमं च और आंख की पीड़ा शान्त होती है। क्वाथो धनुर्वातहरः प्रशस्तः ॥ [५४९] एलादि क्वाथः (२) एरण्डमूल, बेल की छाल, दोनों प्रकार की (यो. र. अश्म; शा. ध. म. खं. अ. २.) कटेली, सौंचल (काला नमक), त्रिकुटा, हींग, | एलोपकुल्यामधुकाश्मभेदशरबती नीबू और सेंधा नमक । इन का क्वाथ कौतीश्चदंष्ट्रावृषको रुबूकः धनुर्वात का नाश करता है। शृतं पिबेदश्मजतुप्रगाढं [५४६] एरण्डादिः (२) (भा. प्र.। वा. र.) सशकरे साश्मरिमूत्रकृच्छ्रे ।। गन्धहस्तवृषगोक्षुरकामृताना इलायची, पीपल, मुल्हैठी, पाषाण भेद, रेणुका, मूलं बलेक्षुरकयोश्च पचेत्तु धीमान् । गोखरू, वांसा और अरण्डमूल । इन के क्वाथ में वातासृगाशु विनिहन्ति चिरप्ररूढ• शिलाजीत पीने से शर्करा, पथरी तथा मूत्रकृच्छ का माजानुगं स्फुटितमूद्धंगतन्तु धीमान् ॥ | नाश होता है। एरण्ड, बासा, गोखरू, गिलोय, खरैटी और | [६५०] एलादिगणः (सु. सू. अ. ३८) ईख इन सब की जड़ लेकर क्वाथ करके पीने से, एलातगरकुष्ठमांसीध्यामकत्वपत्रनाग. पुराना जानुओं तक फैला हुआ, स्फुटित (फटा पुष्पप्रियङ्गुहरेणुकाव्याघनखशुक्तिचण्डा. हुआ) एवं ऊपर को चलने वाला वातरक्त नष्ट स्थौणेयक श्रीवेष्टक चोचचोरकवालक होता है। गुग्गुलसर्जरसतुरुष्क कुन्दुरुकाऽगुरुस्पृक्को [५४७] एयरुबीजादिः (भा. प्र. । मू. कृ.) एरुिबीज मधुकश्च दावों शीरभद्रदारुकुङ्कुमानि पुनागकेशरश्चेति ॥ पैत्ते पिबेत्तण्डलधावनेन । एलादिको वातकफो निहन्याद्विषमेव च । खीरे के बीज, मुल्हैठी और दारुहल्दी को वर्णप्रसादनाकण्डूपिउकाकोठ नाशनः।। पीस कर चावलों के पानी के साथ पीने से पैत्तिक | छोटी इलायची, तगर, कूठ, जटामांसी, रोहिमूत्रकृच्छ्र का नाश होता है। षतृण (गन्ध तृण), दालचीनी, तेजपात, नाग[५४८] एलादिक्वाथः (१) | केसर, फूलप्रियंगु, रेणुका, व्याघ्र नख ( वृहन्नखी) ___ (वृ. नि. र. । शू.) शुक्ति ( अल्प नख ), चंडा ( चोर पुष्पी), थुनेर एलाहिंगुयवक्षारसैंधवप्रतिवासितः। ( ग्रन्थि पर्णी ), श्रीवेष्ट, चोच (दालचीनीभेद ), पीत एरंडतेलेन कटिहद्भवमुद्धतम् ।। चोरक ( ग्रन्थीपर्णी भेद ) सुगन्धवाला, गूगल, राल, जाठरं नाभिशलं च प्राकक्षिगत तथा। तुरुष्क (शिला रस), कुन्दरु, अगर, स्पृक्का, खस, शिरःकर्णाक्षिशूलं च नाशयत्यतिवेगतः ॥ देवदारु, केसर और कमलकेसर (या नागकेसर)। इलायची, हींग, यवक्षार और सेंधानमक के यह एलादि गण वात, कफ, विष, खुजली, शीत कषाय में अरण्डी का तेल डाल कर पीने से | पिडिका ( फुसियां) और कोठ नाशक तथा वर्ण कमर, हृदय, जठर, नाभि, पीठ, कोख, शिर, कान प्रसादक (शरीर का रंग स्वच्छ करने वाला ) है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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