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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७८) भारत-भैषज्य-रत्नाकर समभागमिदं विभावये. में खरल करके १-१ माशे की गोलियां बनावे । खरातपे त्वथ जम्बुवारीणा | मात्रा १ गोली । इन्हें इमली के फल के रस के उदरामयकुम्भकेसरीरस साथ सेवन करने से तीव्र विरेचन होकर स्त्रियोंका एष प्रथितोस्य माषकः॥ जलोदर रोग नष्ट होता है। पथ्य-दही, भात । सुरवाय॑नुदापयेद्भिपक् [५२५] उदरारिरसः (२) (र. र., उदर.) प्रसभं हन्ति व्रण गदम्। रसेन ताम्रायसभस्मगन्धं यकृतं क्रिमिमग्रमांसकं शिला हरिद्रा जयपालतुल्यम् । कमळं प्लीहजलोदराह्वयम् ॥ शिलाजतुं टंकणकश्च सर्व जठरानलसार्द्धगुल्मकं विमर्य सम्यकपरिभावयेञ्च ॥ परमसाममथाम्लपित्तकम् ॥ निर्गुण्डिकाव्युषणभृङ्गचित्रार्कशुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, ताम्रभस्म, त्रिकुटा, तोयेन दिनप्रमाणम् । सोहागेकी खील, सज्जीखार, जवाखार, पीपला मूल, चव, चीता, पांचोंनमक, अजवायन और हींग । क्वाथेन निम्बस्य दिनप्रमाणं सब चीजें समान भाग लेकर पहिले पारे और सिद्धो रसः स्यादुदरारिसंज्ञः॥ गन्धककी कजली करें फिर अन्य पदार्थोका चूर्ण | यथाशनि धरपक्षपाते तथा मिलाकर तेज धूपमें नींबूके रसकी सात भावना रसोऽयं धु दरं निहन्ति । देकर १-१ मारोकी गोलियां बनावें । रस सिन्दूर, ताम्र भस्म, लोह भस्म, शुद्ध ____ इन्हें देवदारु के क्वाथ के साथ सेवन करने गन्धक, शुद्ध मनसिल, हल्दी, शुद्ध जमाल गोटा, से व्रणजन्य रोग, जिगर, किमि, अग्रमांस, कमठ, | शुद्ध शिलाजीत और सुहागेकी ग्वील । सब चीजें तिल्ली, जलोदर, अग्निमांद्य, गुल्म, आमरोग और समान भाग लेकर चूर्ण करके संभाल, त्रिकुटा, अम्लपित्त का नाश होता है। भांगरा, चीता, आक और नीम के रस में १--१ [५२४] उदरारिरसः (१) दिन घोटें। (र. सा. सं., उदर.) यह रस उदर रोगों के लिये अत्यन्त उपयोगी है। पारदं शुक्तितुत्थश जैपालं पिप्पलीसमम्। | [५२६] उद्दामाख्यो रसः आरग्वधफलान्मजा वज्रीक्षीरेण मईयेत् ।। (वृ. नि. र., गुल्म.) माणमात्रां वटी खादेत्स्रीणां जलोदरं जयेत् ।। सूतः कर्षः शांखवृक्षस्य ? नीरैः चिश्चाफलरसञ्चानु पथ्यं दध्योदनं हितम् । साक्ष्याद्भिः पेपयेद्धस्रमेकम् । दकोदरहरश्चैव तीत्रेण रेचनेन च ॥ भूमेः कुक्षौ पंचधैवं पुटित्वा ___शुद्ध पारा, सीप, शुद्ध नीला थोथा, शुद्ध | युज्यं तुल्यं चारुजेपालगर्भात् ।। जमाल गोटा, पीपल और अमलतास का गूदा । उद्दामाख्यः स्याद्रसः सर्पिसा यह सब चीजे समान भाग लेकर थोहर के दूध । यो गुंजायुग्मं पित्तगुल्मं निहति । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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