SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इकारादि-रस (१६३) पथ्य-विरेचन होने के बाद भात का । [४७१] इन्दुशेखरो रसः आहार देना चाहिये। (भै. र., स्त्री. रो.) [४७०] इच्छाभेदीरसः (८) शिलाजत्वभ्रसिन्दूरप्रयालायोरजांसि ज । (मै. र. उदरे) माक्षिकश्च तथा तालं समभागानि मर्दयेत् ॥ भृङ्गराजस्य पार्थस्य निर्गुण्डया वासकस्य च । शुद्धस्तस्य मापैकं गन्धकान्माषकत्रयम् । स्थलपमस्य पत्रस्य कुटजस्य च वारिणा ।। विभीतकस्य माकं धान्याश्चैव तु माषकम् ॥ | भावयित्वा वटीः कृत्वा कलायपरिमाणतः । माषद्वयश पिप्पल्याः शुण्ठीनां माषकत्रयम् । यथा दोषानुपानेन गर्भिणीषु प्रयोजयेत् ॥ जैपालवीजमाया गुडकं विंशति तथा। गर्भिणीनां ज्वरं घोरं वासं कासं शिरोरुजम् । अम्ललोणीरसैपिष्ट्रा वटिका कारयेद्बुधः । | रक्तातिसारं ग्रहणीं वान्ति पहेश्च मन्दताम् ॥ कलायपरिमाणान्तु भक्षयेद्रेचनार्थकम् ।। । | आलस्यमपि दौर्बल्यं हन्यादेष न संशयः । अम्ललोणीरसैःसार्द्ध तोयमुष्णं पिबेदनु । कलेरादौ ससर्जेमं भगवानिन्दुशेखरः ॥ तावद्विरिच्यते वेगाद्यावच्छीतं न सेवते। शुद्ध शिलाजीत, अभ्रक भस्म, रससिंदूर, ___ शुद्ध पारा २ माशा, शुद्र गन्धक ३ माशे, | मूंगाभस्म, लोहभस्म, सोना मक्खी भस्म और शुद्ध बहेड़ा १ माशा और आमला १ माशा, पीपल २ | हरताल सब चीज़े समान भाग लेकर सबको एकत्र माशे, सोंठ ३ माशे, शुद्ध जमालगोटेकी मज्जा खरल करके भांगरा, अर्जुन, संभालु, बासा, स्थूल(गिरी ) २० नग, प्रथम पारा गन्धककी कजली पद्म, कमल और कुडेकी छाल, इनके यथासाध्य बनावें, फिर उसमें अन्य द्रव्योंका चर्ण मिलाकर । क्वाथ या रसकी भावना देकर मटर के समान अम्ललोणी (चूके) के रसमें खरल करके मटर | गोलियां बनावें। के समान गोलियां बनावें। इन्हें यथोचित अनुपानके साथ सेवन करइन्हें चकेके रसके साथ खाकर उपरसे गरम | नेसे गर्भिणी स्त्रीका घोर ज्वर, श्वास, खांसी, शिर पानी पिया जाय तो उस समय तक दस्त आते । पीड़ा, रक्तातिसार, संग्रहणी, वमन, अग्निमांद्य, रहते हैं जब तक ठंडा पानी न पिया जाय। आलस्य, दुर्बलता आदि रोगों का नाश होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy