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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५२) भारत-भैषज्य रत्नाकर लगे तब शीतल जल देवे तथा रात्रीमें थोडी भांग । करता है। शुद्धकर घोट छानके पीवे तो यह अतिसार वालेको | [४४१] आनंदरसः (वृ. नि. र. अति.) हीतकारक होती है। जातीफलं सैन्धवहिङ्गुलश्च [४३९] आनन्दभैरवो रसः (३) वराटशुण्ठीविषहेमबीजम् । (भै. र, अति.) सपिप्पलीकं वटिकां च हिङ्गुलश्च विषं व्योषं टङ्गनं गन्धक समम् । कुर्याद्गुंजाप्रमाणां जठरामयघ्नीं ॥ जम्बीररससंयुक्तं मर्दयेद्याममात्रकम् ॥ निहन्ति वातं कफशूलमात्रकासश्वासातिसारेषु ग्रहण्या सानिपातिके । मामातिसारं ग्रहणीविकारम् । अपस्मारेऽनिले मेहऽप्यजीणें वह्निमान्धके । । निहन्ति शुष्कं सितया गुञ्जामात्रः प्रदातव्यो रसो ह्यानन्दभैरवः॥ । समेतं रसोयमानंद इति प्रदिष्टः ॥ ___ शुद्ध सिंगरफ, शुद्ध मीठा तेलिया, त्रिकुटा, | ___ जायफल, सेंधा लवण, शुद्ध शिंगरफ, कौड़ी सुहागेकी खील और शुद्ध गन्धक सब चीजें समान | भस्म, सोंठका चूर्ण, शुद्ध मीठा तेलिया, धतूरे के भाग लेकर महीन चूर्ण करके एक पहर तक जम्बीरी | बीज और पीपल । सब चीजें समान भाग लेकर नींबू के रस में धोटें। इसे १ रत्तीकी मात्रा में सेवन | घोट कर एक एक रत्ती की गोलियां बनावें । करने से खांसी, श्वास, अतिसार, संग्रहणी, सन्नि- इनको खांडके साथ सेवन करने से उदररोग, वात, पात, अपस्मार, वातव्याधि, प्रमेह, अजीर्ण और | कफशूल, आमातिसार, संग्रहणी और मुखिया मसान मन्दाग्नि का नाश होता है। का नाश होता है। [४४०] आनन्दभैरवो रसः (४) [४४२] आनन्दोदय रसः (भै. र. पाण्डु) (र. रा. सुं. श्वासे.) पारदं गन्धकं लोहमभ्रकं विषमेव च । पारदं गन्धकं चैव भृङ्गराजेन मर्दयेत् ।। समांशं मरिचं चाष्टौ टङ्कणश्च चतुर्गुणम् ॥ हिङ्गुलं च विषं व्योष टङ्कणं मगधा समम् ।। | भृङ्गराज रसैः सप्त भावना चाम्लदाडिमैः । मातुलुङ्गरसर्मद्य रसमानन्दभैरवम् । गुञ्जाद्वयं पर्णखण्डे खादेत सायं निहन्ति च॥ कासे खासे क्षये गुल्मे ग्रहण्या सान्निपातिके ॥ वातश्लेष्मभवान् रोगान् मन्दाग्नि ग्रहणी ज्वरान् अपस्मारे महाघोरे शस्तमानंदभैरवम् ।। अरुचिं पाण्डुताश्चैव जयेदचिरसेवनात् ॥ ___ शुद्ध पारद और शुद्ध गन्धक समान भाग | नष्टमग्नि करोत्येष कालभास्करतेजसम् । लेकर कजली करके भांगरे के रस में घोटें फिर पर्वतोऽपि हि जिर्यंत प्राशनादस्य देहिनः॥ इसमें शुद्ध शिंगरफ, शुद्ध मीठा तेलिया, त्रिकुटा, गर्वनमम्लमाषश्च भक्षणादेव जीर्यति । सुहागेकी खील और पीपल । इनमें से प्रत्येक का शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, लोहभस्म, अभ्रकचूर्ण पारेकी बराबर मिलाकर बिजौरे नींबू के रस | भस्म और शुद्ध मीठातेलिया १-१ भाग, काली में खरल करें। यह खांसी, श्वास, राजयक्ष्मा, गुल्म, | मिर्च ८ भाग, सुहागेकी खील ४ भाग । प्रथम संग्रहणी, सन्निपात और घोर अपस्मार का नाश पारागन्धककी कजली बनावें फिर उसमें अन्य For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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