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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि-रस (११७) आग्निसन्दीपनं हृद्यं कान्त्यायुबलबुद्धिकृत् । । ब्राह्मायुः स्याचतुर्मासै रसोऽयममृतार्णवः ॥ विवज्य शाकाम्लमपि स्त्रियश्च | तिलकौरुण्टपत्राणि गुडेन भक्षयेदनु ॥ सेव्यो रसो जाङ्गललावकानाम् । चार भाग रससिन्दुर, आठ भाग लोह भस्म, शाल्योदनं षष्टिकमाज्य मुद्ग | छः भाग अभूक भस्म और पांच भाग शुद्ध गन्धक। औद्रं गुड क्षीमिह क्रियायाम् ॥ इन सबको त्रिफले के क्वाथ, भांगरा, सहजना, रस सिन्दूर * ५ तोला, लोह भस्म ५ तोला, चीता और कुटकी, इन सब के रस में अलग २ ताम्र भस्म ५ तोला, मिलावा,गन्धक, अभ्रक भस्म, सात सात भावना दे। फिर सब वस्तुओं के और शुद्ध गूगल ५.५ तोला, हैड़, बहेड़ा २॥२॥ बराबर पिप्पली चूर्ण मिलावे । यह औषधि ४ माशा तोला, आमला ८ तोला २ माशे, घृत १ सेर । लेकर पुराने गुड के साथ सेवन करने से जरा त्रिफले का काथ २ सेर, सबको विधि पूर्वक लोहे ! और अकाल मृत्यु हार जाती हैं । चार मास तक के बर्तन में पाक करे। इसके पाककी विधि लौह इस अमृतार्णव के सेवन करने से ब्रह्मा के समान के पाक के समान है। इसे लोहे के पात्र में लोहे परमायु होती है (?) इस औषधि को सेवन करके के डंडे से शहद और घृत के साथ मर्दन करके तिल, गुड और कुरण्ट के पत्तों का रस एकत्र प्रतिदिन प्रातः काल १-१ रत्ती सेवन करे और करके पीना चाहिए। ऊपर से नारियल का पानी पिये। इससे सब प्रकार [३२३] अमृतार्णवोरसः के कुष्ट, बलि पलित, पाण्डु, प्रमेह, आमवात, वातरक्त, कृमि, शोथ, पथरी, शूल, मस्सा, वात (र. रा. मु., भै. र. र., सा. सं. वराति. अति.) व्याधि, क्षय, श्वास आदि रोगों ना होता है तथा हिंगुलोत्थं रसं गन्धकं टङ्कणं शटी । यह शुक्र वृद्धि, अग्नि संदीपन, बल, बुद्धि और धान्यकं बालकं मुस्तं पाठा जीरघुणप्रिया ।। कान्ति की वृद्धि करता है। प्रत्येकं तोलकं चूर्ण छागीक्षीरेण पेपयेत् । अपथ्य--अम्लरस युक्त शाक और स्त्री प्रसंग। मापाभा वटिका कार्या रसोयममृतार्णवः ।। पथ्य-शाली चावल, शाठी चा पन्त, धी, मूंग, शहद, वटिकां भक्षयेत्प्रातर्गहनानन्दभाषितम् । गुड़ और दूध । धान्यजीरकयूषेण विजयाशणवीजतः ।। [३२२] अमृतार्णवः (सें. चि. अ. ८) मधुना छागदुग्धेन मंडेन शीतवारिणा । सूतभस्म चतुर्भागं लोहभस्म तथाष्टकम् । कदलीमोचकरसैः कश्चटद्रवकेण च ॥ मेघभस्म च षड्भानं शुद्ध गन्धस्य पञ्चकम् ॥ अतिसारं जयेदुग्रमेकजं द्वंदजं तथा । भावयेत् त्रिफला क्वाथे तत्सर्व भृङ्गजद्रवः। दोपत्रयसमुद्भूतमुपसर्गसमन्वितम् ।। शिवहिकटुक्काथैः सप्तवा भावयेत्पृथक् ॥ शूलनो वद्विजननो ग्रहण्यर्थी विकारनुत् । सर्वतुल्या कणा योज्या गुडैमिश्र पुरातनैः। | अम्लपित्तप्रशमनः कासनो गुल्मनाशनः ।। निष्कमात्रं सदा खादेत् जरां मृत्युं निहन्त्ययम् | हिंगुल से निकाला हुवा पारा, लोहभस्म, शुद्ध * कोई कोई हिंगुल का पारद लेते हैं। गन्धक, सुहागे की खील कचूर, धनिया, सुगंध For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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