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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८६) भारत-भैषज्य रत्नाकर अनुपानके साथ २-२ रत्तीकी मात्रामें सेवन करने । अरुचिमें त्रिकुटाके साथ सेवन करना चाहिए । से विसूचिका, शूल, मन्दाग्नि, अजीर्ण और संग्र- यह अग्निकुमार रस सर्व रोगनाशक है। हणीका नाश होता है। [२५०] अग्निकुमाररसः (१८) [२४९] अग्निकुमारोरसः (१७) (भै. र. र. रा. मुं. ग्रहणी) (र. रा. सुं. अरुयौ) | रसं गन्धं विषं व्योष टङ्कन लौहमस्मकम् । यवक्षारं तथा खर्जी टङ्कणं लवणानि च। अजमोदाहिफेनं च सर्वतुल्यं मृताभ्रकम् ।। त्रिकटुत्रिफलालोहं चूर्ण द्विविधभागकम् ॥ चित्रकस्य कषायेण मर्दयेद्याममात्रकम् । कपूरं च लवङ्गश्च चव्यकं चित्रकं तथा। मरिचाभा वटी खादेदजीणं ग्रहणी तथा ॥ दाडिमाम्लं विशेषेण शृङ्गवेरश्च रेणुकाम् ॥ नाशयेनात्र सन्देहो गुह्यमेतचिकित्सितम् ॥ एतानि समभागानि सूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् ।। रसश्चाग्निकुमारोऽयं दीपयत्याशु पावकम् ॥ पवानीनिम्बुनीरेण दिवसत्रयभावितम् ॥ शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, शुद्ध विष, त्रिकुटा, तथामृतारसेनैव मर्दितं चाम्लवेतसः। सुहागा, लोहभस्म, अजमोद और अफीम, सब चणकाकारमात्रेण दीयते रसउत्तमः ॥ समान भाग, अभ्रक भस्म सबके बराबर। प्रथम अरोचकं वहिविशेषमान्य, पारद गन्धककी कजली बनाकर पश्चात् सबको १ गुल्मप्रमेहं विनिहन्त्यवश्यम् । पहर तक चित्रकके रसमें घोटकर निःसन्देह काली चुक्रेण युक्तं खलु पक्तिशूलं, मिर्च बराबर गोलियां बनावे । यह रस अजीर्ण, सूर्योदयात् वृद्धमतीव जातम् ॥ ग्रहणी, और मन्दाग्निका नाश करता है। श्वासकासकफातङ्कनाशनं प्राणवर्द्धनम् ॥ [२५१] अग्निकुमारोरसः (१९) दद्यात् त्रिकटुकश्चैव कफारोचकनाशनम् ॥ (र. र. स. स्थौ अ. १-८) रसो ह्यग्निकुमारोऽयं सर्वरोगप्रणाशनम् ॥ | गन्धकेन द्विकर्षण शुद्धसूतेन तावता । यवक्षार, सज्जी खार, सुहागा, पांचो लवण, | विधाय कजली सूक्ष्मामेकवासरमदनात् ॥ त्रिकुटा, त्रिफला और लोहचूर्ण २-२ भाग । कपूर, कर्षमात्रं विषं दत्वा मदयित्वा दृढं पुनः। चव्य, लौंग, चीता, दाडिम (अनार दाना) सोंठ | हंसपादीरसस्तैवा स्तोकं स्तोकं मुहुर्मुहुः॥ और रेणुका १-१ भाग । सबका बारीक चूर्ण कुडवार्थमितः पश्चागोलं कृत्वा विशोष्य च । करके ३ दिन तक अजवायन और नीबूके रसमें काचकुप्यां विनिक्षिप्य शुल्वनाडी पिधाय च ॥ घोटे फिर गिलोय और अमलवेतके रसमें ३-३ | देवीशास्त्रे पुनः प्रोक्तं विषं कर्ष विचूर्णितम् । दिन घोटकर चनेके बराबर गोलियां बनावे । यह ऊर्धाधो गोलकानां हि काचकृप्यां विनिक्षिपेत् रस अरुचि, मंदाग्नि, गुल्म और प्रमेह का नाश निक्षिपत्कजली मध्ये यतश्चायं मजायते। करता है। चूक्रके (काञ्जी का एक भेद) के साथ | ततश्च द्वयङ्गुलोत्सेधं मृदा कूपी विलिप्य च ॥ सेवन करने से परिणाम शूल, सूर्यावर्त, श्वास, विशोष्य बालुकायन्त्रे यंत्रवर्गप्रकाशिते। खांसी, कफरोग आदिका नाशक है। कफ की अधोमुखीं घटी क्षिवा क्षिपेदुपरि बालकाम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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