SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अकारादि-रस Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८१ ) [२३५] अग्निकुमारो रसः (३) (बृ. नि. र. र. से. चि., अ. र. ) star का ग्राह्य गन्धकाद् द्वौ तथैव च । यत्नतस्तूभयं मद्यं दिनं हंसपदीरसैः । कल्कस्य टिकां कृत्वा निक्षिपेत् काचभाजने । ममृतं तत्र क्षिया वक्त्रं निरोधयेत् ॥ कूपिकायाः परौ भागौ वालुकाभिश्च पूरयेत् । सार्द्धं यावदहोरात्रं तावत्तत्र पचेद्रसम् ॥ दीपमात्रं समारभ्य पावकं वर्द्धयेच्छनैः । स्वाङ्गशीतलतां ज्ञात्वा समाकृष्यरसं ततः ॥ तोलार्द्धममृतं तत्र क्षिपेत्तावत्तथोपणम् ॥ भक्षितोरयंरक्तिमात्रो रसस्त्वग्निकुमारकः । सन्निपातज्वरं हन्याद्वातं मन्दाग्नितामपि ।। शूलं संग्रहणीं गुल्मं क्षयं पाण्डुगदं तथा । श्वासकासादिकान्सर्वान् गदानेष विनाशयेत् ॥ [२३४] अग्निकुमारो रसः (२) (भै. र.) मरिचोप्राकुष्ठस्तैः सर्वैरेव समं विषम् । पिष्ट्वा चार्द्ररसेनैव वटिका रक्तिकामिता ॥ आमज्वरे प्रथमतः शुण्ठया च मधुपिष्टया । आर्द्रकस्यरसेनापि निर्गुण्ड्याच कफज्वरे ॥ पीनसे च प्रतिश्याये आर्द्रकस्य च वारिणा । अग्निमान्धे लवङ्गेन शोथे सदशमूलकः ॥ ग्रहण्ये सहशुण्ठया च मुस्तकेनातिसारके । सामे च धान्यशुण्ठीभ्यां पक्के च कुटजं मधु। सभपातज्वरारम्भे पिप्पल्यार्द्रकवारिणा ॥ कण्टकार्या रसैः कासे श्वासे तैलगुडान्वितम् । पीत्वा वटीद्वयं रोगी स्वास्थ्यं समुपगच्छति । सर्वेषामेव रोगाणामामदोषप्रशान्तये । अग्निवृद्धिकरोनाना विख्यातोऽग्निकुमारकः ॥ ॥ 1 काली मिर्च, वच, कूठ और नागरमोथा, १ - १ भाग तथा विष ४ भाग लेकर सबको अद्रक के रसमें घोटकर १९ - १ रत्ती भरकी गोलियां बनावें । इसे सोंठ और मधुके साथ खाने से आमज्वर, अद्रक और निर्गुण्डीके रसके साथ खाने से कफज्वर, अद्रक के रसके साथ सेवन करने से जुकाम और पीनसका नाश होता है। अग्निमांद्यमें लवंगके साथ, सूजनमें दशमूल क्वाथ के साथ । ग्रहणीमें सोंठके साथ, अतिसारमें नागरमोथेके साथ, आमतिसारमें सोंठ और धनियेंके साथ, 'पक्वातिसार में कूड़ेकी छालके क्वाथ और मधुके साथ, सन्निपात ज्वरके आरम्भमें पीपल और अद्रक के रसके साथ, खांसी में कटेली रसके साथ, श्वासमें तैल और गुड़के साथ २-२ गोली खानी चाहिएं। ये गोलियां समस्त रोगों में आमदोषकी शान्ति के लिये सेवन की जा सकती हैं । यह रस अग्निवृद्धिके लिए प्रसिद्ध है । शुद्ध पारद और गन्धक २॥ - २॥ तोले लेकर दोनोंको १ दिन हंसापदीके रसमें खरल करे फिर उसका गोला बनाकर कपरमिट्टी की हुई आतशी शीशीमें डाल दे और उसमें १ | तोला शुद्ध वच्छनाग डाले, फिर शीशीका मुख बन्द करके बालुका यन्त्र में रखकर शीशीके गले तक रेत भरकर १ || दिनतक अग्नि दे। प्रारंभ में दीप शिखा के समान अग्नि देकर धीरे धीरे बढानी चाहिए सर्वथा शीतल होने पर गोलेको निकालकर खरल में डालें और उसमें आधा तोला शुद्ध विष तथा आधा तोला कालीमिर्च डालकर घोटे | यह 'अग्निकुमार रस' एक रत्ती की मात्रा में खानेसे सन्निपात ज्वर, वातज्वर, मन्दाग्नि, शूल, संग्रहणी, गुल्म, क्षय और पाण्डु, तथा श्वास खांसी का नाश करता है । मात्रा:१ रत्ती । | For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy