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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पण्डितराज जगन्नाथ यह अवश्य है कि पण्डितराजने अपनी प्रखर विद्वत्ता एवं विलक्षण प्रतिभाके चमत्कारसे उसे परिपक्व रूप दे दिया है। मुगलकालके विलासी जीवनकी झलक भी पण्डितराजकी कविताओंमें यत्र-तत्र मिल जाती है। यह प्रसिद्ध है कि कबूतरबाजीका प्रारम्भ भारतमें मुगलोंसे ही प्रारम्भ हुआ था। इसीको रसगंगाधरमें लज्जाभावकी ध्वनिमें पण्डितराजने दर्शाया है निरुद्ध्य यान्ती तरसा कपोती कूजत्कपोतस्य पुरो ददाने । मयि स्मिता वदनारविन्दं सा मन्दमन्दं नमयाम्बभूव ।। इसी प्रकार रसाभासके उदाहरणमें भवनं करुणावती विशन्ती गमनाज्ञालवलाभलालसेषु । तरुणेषु विलोचनाब्जमालामथ बाला पथि पातयाम्बभूव ॥ "एक अत्यन्त रूपवती युवती जा रही थी। कुछ मनचले उसके पीछे हो लिये । बहुत दूर तक पीछा करनेपर भी, सिवा थोड़ी सी नेत्रतृप्तिके, उन्हें कुछ हाथ न लगा। इतनेमें उसका घर आगया और वह भवनमें प्रवेश करने लगी। युवक सहसा ठिठककर खड़े हो गये, कि यह हमें बानेको भी कह देती तो हम कृतार्थ हो जाते। उनकी इस दशापर युवतीको करुणा हो आई और वह रास्तेकी ओर एक नजर मारकर मुस्कराती हुई भीतर चली गई।" वे एक पूरा दृश्य ही चित्रित कर देते हैं। तीरे तरुण्या वदनं सहास नीरे सरोजं च मिलद्विकासम् ॥ वीक्ष्य वक्षसि विपक्षकामिनी हारलक्ष्म दयितस्य भामिनी। x विनये नयनारुणप्रसाराः प्रणतो हन्त निरन्तराश्रुधाराः ॥ (आदि) For Private and Personal Use Only
SR No.020113
Book TitleBhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
PublisherVishvavidyalay Prakashan
Publication Year1968
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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