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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir अने अलोकने आश्रयी गाडानी ऊधने आकारे कहेली छे. [प्र०] हे भगवन् ! १ आग्रेयी दिशानी आदिमा झुं१२ ते क्याथी व्याख्यामानीकळे छे ? ३ तेनी आदिमां केटला प्रदेशो के ? ४ ते केटला प्रदेशना विस्तारवाळी के ? ५ ते केटला प्रदेशनी के ? ६ तेने अन्ते | १३वतके प्राप्तिः शुं छे ? ७ अने ते केवा आकारे ? [उ०] हे गौतम! १ आग्नेयी दिशानी आदिमां रुचक , २ ते रुचक थकी नीकळे के, ३ उडशा ॥११५६॥ तेनी आदिमां एक प्रदेश छे, ४ ते एक प्रदेशना विस्तारवाळी छ, ५ ते उत्तरोत्तर वृद्धिरहित छे, अने लोकने आश्रयी असंख्यप्रदे ॥११५॥ शात्मक छे, अलोकने आश्रयी अनन्त प्रदेशात्मक , ६ लोकने आश्रयी आदि अने अन्त सहित , अने अलोकने आश्रयी सादि अने अनन्त जे. अने ७ ते तूटी गएली मोतीनी माळाना आकारे कहेली . याम्या (दक्षिण) दिशा पेन्द्री (पूर्व ) दिशानी पेठे जाणवी नती आग्नेयी दिशानी पेठे जाणवी-इत्यादि जेम ऐन्द्री दिशा कही, तेम चारे दिशाओ अने आनेयी दिशा कही तेम चारे विदिशाओ जाणवी. [प्र०] हे भगवन् ! विमला (ऊर्ध्व) दिशानी आदिमां शुं छे? इत्यादि आयीनी पेठे प्रश्न करवो. [उ.] हे गौतम ! १ विमला दिशानी आदिमां रुचक छ, २ ते रुचक थकी नीक छ, ३ तेनी आदिमा चार प्रदेश छे, ४ ते वे प्रदेशना विस्तारवाळी छे, ५ उत्तरोत्तर वृद्धिरहित ते दिशा लोकने आश्रयी असंख्यातप्रदेशात्मक छे. बाकी अधुं आग्नेयी दिशाने विषे कधु छ तेम जाणवू. परन्तु एटलं विशेष के के ते रुचकने आकारे कहेली छे. ए प्रमाणे तमा (अधो) दिशा पण जाणवी. ॥ ४८०॥ किमिय भंते ! लोपत्ति पवुचह, गोयमा! पंचत्यिकाया, पमणं पवतिए लोएत्ति पवुचइ, तंजहा-धम्मत्थिकाए अहम्मस्थिकाए जाव पोग्गलस्थिकाए | धम्मस्टिकाए णं भंते ! जीवाणं किं पवत्तनि ?, गोयमा ! धम्मत्थिका कारण जीवाणं आगमणगमणभासुम्मेममणजोगा वहजोगा कायजोगा जे यावन्ने तहप्पगारा चला भावा सम्वे 131 PORNKA For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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