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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥११२६॥ 9A%ECRUCIE गोयमा! संखेन्ज वित्थडावि असंखेजवित्थडावि, इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएसु एगसमएणं केवतिया नेरइया उववजंति १? केवतिया काउलेस्सा उववजंति २१||१३शतके केवड्या कण्हपविया उववज्जति ३१ केवतिया सुक्कपक्खिया उववज्जति ? केवतिया सन्नी उबवजति ५१ केव | उद्देशान तिया असन्नी उववजनि? केवतिया भवसिद्धीया उव०७१ केवतिया अभवसिद्धीया उवव०८? केवतिया आभिणिबोहियनाणी उव० ९१ केवइया सुयनाणी उव० १०? केवइया ओहिनाणी उववजंति ११? केवइया मइअन्नाणी उवव०१२? केवइया सुय अनाणी उव०१३ ? केवइया विम्भंगनाणी उवव०१४ ? केवइया चक्खुदंसणी उव०१५? [प्र.] राजगृह नगरमा [भगावान् गौतम] यावत्-ए प्रमाणे चोल्या के-हे भगवन् ! केटली नरक पृथिवीओ कहेली के ? [उ.] हे गौतम! सात नरक पृथिवीओ कहेलो , ते आ प्रमाणे-१ रत्नप्रभा, यावत् ७ अधः सप्तमनरकपृथिवी. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा नरकपृथिवीने विषे केटला लाख नरकावासो कहेला छे ? [उ०] हे गौतम ! त्रीश लाख नरकावासो कहेला के. [१०] है | भगवन् ! ते नरकावासो संख्याता योजन विस्तारवाळा के के असंख्याता योजन विस्तारवाळा छ ? [उ०] हे गौतम ! संख्याता योजन विस्तारवाळा पण छे अने असंख्याता योजन विस्तारवाळा पण छे. [प्र०] हे भगवन् ! आ रनप्रभापृथिवीना त्रीश लाख नरकावासोमांना संख्यातायोजनविस्तारवाळा नरकावासोने विषे एक समये १ केटला नारक जीवो उत्पन्न थाय, २ केटला कापोतलेश्यावाळा उत्पन थाय, ३ केटला कृष्णपाक्षिकजीवो उत्पन्न थाय, ४ केटला शुक्लपाक्षिक जीवो उत्पन्न थाय, ५ केटला संज्ञी जीवो उत्पन्न थाय, ६ केटला असंझी जीवो उत्पन्न थाय, ७ केटला भवसिद्धिक जीवो उत्पन्न थाय, ८ केटला अभवसिद्धिक जीवो For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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