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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir व्याख्या प्राप्ति १४४२॥ हा एवं जहा सोहम्मपुढ विकाइओ सव्वपुढवीसु उबवाइओ एवं जाव ईसिपम्भारापुढ विकाइओ सब्बपुढवीसु उववा| एयब्यो जाव अहेसत्तमाए, सेवं भंते! २॥ (सूत्र ६०६) ॥ १७-७॥ (५१७शतके [प्र.] हे भगवन् ! जे पृथिवीकायिक जीव सौधर्मकल्पमा मरणसमुद्घात करी आ रखममा पृथिवीमां पृथिवीकायिकपणे Known 1* उमेश | उत्पन्न थवाने योग्य छे ते हे भगवन ! प्रथम उत्पन्न थाय अने पछी आहार करे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] जेम रत्नप्रभापृथिवीना पृथिवीकायिक जीवनो बधा कल्पोमां, यावत-ईषत्प्राग्भारा पृथिवीमा उपपात कहेवामां आव्यो के तेम सौधर्मकल्पना पृथिवीकायिक जीवनो पण साते नरकपृथिवीमा यावत्-सप्तम नरक सुधी उपपात कहेचो. तथा जेम सौधर्मकल्पना पृथिवीकायिक जीवनी सर्व पृथिवीओमा उपपात कयो के तेम बधा खगों, यात्रत्-ईषत्प्रारभारा पृथिवीमां पृथिवीकायिक जीवनो पण सर्व पृथिवीओमां यावतमातमी नरकपृथिवी सुधी उपपात कहेवो. 'हे भगवन् ! ते एमज , हे भगवन् ! से एमज छ.' ।। ६०६ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना १७ मा शतकमां मातमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण धयो. शतक १७. (उद्देशक ८.) आउकाइए गंभंते! हमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोह.२ जे भविए सोहम्मे ऋप्पे आउकाइयत्ताए उव-| टू वजित्तए एवं जहा पुढ विकाइओतहा आउकाइओवि सम्बकप्पेसुनाव ईसिपम्भाराए तहेव उववाएयचो एवं है| जहा रयणप्पभााउकाइओ उदवाइओ तहा जाच अहेसत्तमापुढविआउकाइओ उवषाएयब्वो जाव ईसिपम्भाः For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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