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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१४८ | मसए सविमाणवत्तव्यथा सा इहवि ईसाणस्स निरक्सेसा भाणियब्बा जाव आयरक्खा, ठिती सातिरेगाई दो सागरोवमाई, सेसचेच जाय ईसाणे देविंदे देवराया ई०२, सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति (सूत्र ६०४)॥१७-५॥ १७ शतके [प्र.] हे भमवर 1 देवेंद्र देवराज ईशाननी सुधर्मा सभा क्यों कही छे! [उ०] हे गौतम! जंबूद्वीप नामे द्वीपमा मंदरपर्वतनी उदेश:५ G॥१५३८ उत्तरे आ रत्नप्रभा पृथिवीना अत्यन्त सम अने रमणीय भूमिमामयी उपर चंद्र अने सूर्यने मूकीने आगळ गया पछी-पावत्-(प्रज्ञा पनासत्रना बीजा) स्थान पदमा कह्या प्रमाणे मध्यभागमा ईशानावतंसक विमान आवे छे. ते ईशानावतंसक नामे महाविमान साडा बार काख योजन लांबु अने पहोळ छ-इत्यादि यावत्-दशम शतकमां शक्रविमाननी वक्तव्यता कही छे ते बधी अहीं ईशान संबंधे | यावत्-आत्मरक्षकनी वक्तव्यता सुधी कहेवी. ते ईशानेन्द्रनुं आयुष किंचित् अधिक बे सागरोपमर्नु छ, बाकी बधुं तेज प्रमाणे जाणवू. मायावत-देवेंद्र देवराज ईशान छ २. 'हे भगवन् ! ते एमज डे, हे भगवन् ! ते एमज छे'.॥ ६०४॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीम्बना १७ मा शतकमा पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. शतक १७. (उद्देशक ६.) पुद विकाइए भंते ! इमीसे रय० पुढ० समोहए २ जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढ विक्काइयत्ताए उववज्जित्तए से भंते । किं पुनि उववलित्ता पच्छा संपाउणेजा पुचि वा संपाउणित्ता पच्छा उवव.१, गोयमा! पुचि वा उववजित्ता पच्छा संपाउणेजा पुचि वा संपाउणित्ता पच्छा उववजेजा, से केगटेणं जाव पच्छा उवचनेजा,81 For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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