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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandit एणं किरिया कजति एवं चेव जाव परिग्गहेणं, एवं एतेवि पंच दंडगा १५ । जंपएसन्नं भंते! जीवाणं पाणाव्याख्या १७वतक इवाएणं किरिया कन्जइ सा भंते ! किं पुट्ठा कजति एवं तहेव दण्डओ एवं जाव परिग्गहेणं २०, एवं एए वीसं3 प्रज्ञप्ति * उमेश ॥१४३५॥ दंडगा ॥ (सूत्रं ६०२)॥ [प्र०] ते काळे ते समये राजगृह नगरमा ( भगावन् गौतम) यावत्-आ प्रमाणे बोल्या के, हे भगवन् ! जीवो रडे प्राणातिपातद्वारा क्रिया-कर्म कराय छ । [उ.] हा कराय . [म.] हे भगवन् ! ते क्रिया (कर्म) रपृष्ट-आत्माए स्पर्शली कराय के अ. स्पृष्ट-आत्माना स्पर्श विना कराय ? [उ०] हे गौतम ! ते स्पृष्ट कराय, पण अस्पृष्ट न कराय-इत्यादि बधु प्रथम शतकना छट्टा 5 उद्देशकमां कया प्रमाणे कहे; यावत्-ते क्रिया (कर्म) अनुक्रमे कराय के, पण अनुक्रम विना कगती नयी. ए प्रमाणे दंढकना क्रमथी याक्त-वैमानिको सुधी जाण. परन्तु विशेष ए के जीवो अने एकेन्द्रियो व्याघात-प्रतिबंध सिवाय छ ए दिशामांथी आवेलां का कर्म करे छे, अने जो व्याघात होय तो कदाच त्रण दिशामांथी, कदाच चार दिशामांथी अने कदाच पांच दिशामांथी, आवेला कर्म करे छे. (जे एकेन्द्रियो लोकान्ते रहेला छे, तेने उपरनी अने आसपासनी दिशाथी कर्म आववानो संभव नथी, तेथी तेओ कचित् त्रण दिशामांथी कदाचिद चार दिशामांथी, अने कदाचित् पांच दिशामांथी आवेलुं कर्म करे छे अने बाकीना जीवो लोकना | मध्य भागमा होत्राथी व्याघातना अभावे छ ए दिशामांथी आवेलु कर्म करे छे. ते सिवाय बाकीना जीवो तो अवश्य छ ए दिशा-15) माथी आवेला कर्म करे छे.) [प्र०] हे भगवन् ! जीवो मृषावादद्वारा कर्म करे ? [उ०] हा, करे छे. [प्र.] हे भगवन् ! भुते क्रिया-कर्म स्पृष्ट कराय-इत्यादि प्रश्न. [उ०] जेम प्राणातिपात संबंन्धे दंडक कझो के तेम मृषावाद संबन्धे पण दंडक कद्देवो. एम । KOCTOCALCOHOLAN CG For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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