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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Krishsagarsuri Gyanmandir उत्सरेणं छोडिसा तहेव जाव चत्तालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एस्थ णं बलिस्स वइरोयणिस्स वइरोयव्याख्या होणरन्नो पलिचंचा नाम रायहाणी पन्नत्ता एग जोयणसयसहस्सं पमाण तहेव जाव बलिपेढस्स उववाओ जाव १६ शतके प्राप्तिः ॥१४११॥ | आपरक्खा सम्वं तहेव निरवसेसं नवरं सातिरेगं सागरोवमं ठिती पन्नत्ता संसं तं चेव जाव वली वइरोयणिदे उदेशः९ ६ वली २॥ सेवं भंते!२ जाय विहरति ।। (सूत्रं ५८८) ।। १६-९॥ P१४१२॥ * [४०] हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र अने वैरोचन राजा एवा बलिनी सुधर्मा ममा क्या कहेली (आवेली) छे ? [उ०] हे गौतम! 31 जंबूद्वीप नामे द्वीपमा मंदर पर्वतनी उत्तरे तिरहुं असंखेय (डीप-समुद्रो ओलंगीन)--इत्यादि जेम चमरनी हकीकतमां कई छे तेम अरुणवर वीपनी बाह्यवेदिकाथी अरुणवर समुद्रमा तालीश हजार योजन अवगाह्या पछी पैरोचनेन्द्र अने वैरोचनराजा एवा बलिनो रुचकेंद्र नामनो उत्पात पर्वत कह्यो . ते उत्पात पर्वत १७२१ योजन उंचो छे. बाकीनु बधुं तेनुं प्रमाण तिमिच्छिकूट पर्वतनी | पेठे जाणवू तेना प्रामादावतंसकर्नु पण प्रमाण तेज प्रमाणे जाणवू. तथा बलिना परिवार साथे सपरिवार सिंहासन पण ते प्रमाणे कहेवु. रुचकेन्द्र नामनो अर्थ पण ते प्रमाणे कडेवो. विशेष ए के अहिं रुचकेन्द्र (पनविशेष) नी प्रभावाळां उत्पलादि जाणवां. बाकी है। बधुं तेज प्रमाणे यावत्-ते बलिचंचा राजधानी तथा अन्योनु (आधिपत्य करतो विहरे ने.) त्यांसूधी कहे. ते रुचकेन्द्र उत्पात P पर्वतनी उत्तरे छ सो (पंचावन कोड, पांत्रीश लाख, पचास हजार योजन अरुणोदय समुद्रमां तिरछु जइने नीचे रत्नप्रभा पृथ्वीमां) | इत्यादि पूर्ववत् यावत्-चालीस हजार योजन गया पछी त्यां वैरोचनेन्द्र वैरोचनराजा एवा पलिनी 'बलिचंचा' नामनी राजधानी | कही (आवेली) छे. ते राजधानीनो विष्कंभ-विस्तार एक लाख योजन छे, याकीनु पधुं प्रमाण पूर्व प्रमाणे जाणवू, अने ते यावत्-है। For Private And Personal *CREARRANCASCRRORMANCE KAK
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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