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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandie SCANCHECRECR एवं वयासी-परिणममाणा पोग्गला परिणया नो अपरिणया परिणमंतीति पोग्गला परिणया णो अपरिणया, व्याख्या-4 से कहमेयं भंते ! एवं?, गंगदत्तादि ! समणे भगवं महावीरे गंगदत्त एवं बयासी-अहंपिणं गंगदत्ता! एवमा. प्रज्ञप्तिः इक्वामि परिणममाणा पोग्गला जाब नो अपरिणया सच्चेणमेसे अटे, तए णं से गंगदत्त देवे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयम8 सोचा निसम्म हद्वतु समणं भगवं महावीरं वंदति नमं० २ नचासन्ने जाव पज्जुवा- 18॥१३८६॥ सति, तए समणे भ. महावीरे गंगदत्तस्स देवस्स तीसे य जाव धम्म परिकहेह जाब आराहए भवति, तए णं से गंगदत्त देवे समणम्स भगवओ. अंतिए धम्मं सोचा निसम्म हट्टतुट्टे उट्टाए उठेति उ.२ समण भगवं महावीरं वदति नमसति २ एवं बयासी-अहं पहं भंते ! गंगदत्त देवे किं भवसिद्धिए अभव सिद्धिए, एवं जहा सूरियाभो जाव बत्तीसतिविहं नविहं उबदंसेति उव. २ जान तामेव दिसं पडिगए (मत्रं ५७६) । | जे वखते श्रमण भगवंत महावीर पूर्व प्रमाणेनी वात पूज्य गौतमने कही रहा के तेज बखते ते ( सम्यग्दृष्टि देव) त्यां शीघ्र | आव्यो अने पछी ते देवे श्रमण भगवंत महावीरने त्रण वार प्रदक्षिणा करी वांदी नमी आ प्रमाणे का के-[H०] हे भगवन् ! महाशुक्र कल्पमा महासामान्य नामना विमानमा उत्पन्न थएला मायी मिथ्यादृष्टि देवे मने आ प्रमाणे कछु के परिणाम पामतां पुद्गलो |'परिणत' न कहेवाय, पण 'अपरिणत' कहेवाय. कारण के ते पुद्गलो हजी परिणमे छे माटे ते 'परिणत' न कहेवाय, पण 'अपरि | णत' कहेवाय. पछी में ते मायी मिथ्यादृष्टि देवेने आ प्रमाणे कयु के-परिणाम पामता पुद्गलो 'परीणत' कहेवाय, पण 'अपरिणत' मन कहेवाय. कारण के ते पुद्गलो परिणमे छे, माटे ते 'अपरिणत' न कहेवाय, पण 'परिणत' कहेवाय. तो हे भगवन् ! ए मारु A CK For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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