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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra · ध्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१३७० ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गोषमा ! पुढविकाइया णं सारीरं वेदणं वेदेति नो माणसं वेदणं वेदेंति से तेणट्टेणं जाव नो सोगे, एवं जान चउ रिंदियाणं, सेसाणं जहा जीवाणं जाब बेमाणियाणं, सेवं भंते । २ त्ति जाव पज्जुवासति (सूत्रं ५६७ ) | [प्र०] राजगृहमां भगवान् गौतम यावत् आ प्रमाणे बोल्या के, हे भगवन् ! शुं जीवोने जरा- वृद्धावस्था अने शोक होय छे ? [+] हे गौतम! जीवोने जरा पण होप के अने शोक पण होय छे. [प्र० ] हे भगवन् । ते ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो हो के, जीवोने जरा अने शोक होय छे ? [उ०] हे गौतम! जे जीवोने शारीरिक वेदना होय छे ते जीवोने जरा होय छे, अने जे जीवोने मानसिक वेदना होय छे ते जीवोने शोक होय के माटे ते हेतुथी एम कम छे के जीवोने जरा अने शोक होय छे, र प्रमाणे नैरयिको संबंधे तथा यावत् स्तनितकुमारो सुधी जाण. [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिकोने जरा अने शोक होय के ? [अ०] हे गौतम ! पृथिवीकायिकने जरा होय छे, पण शोक नथी होतो. [प्र०] हे भगवन् । तेनुं शुं कारण के पृथिवीकायिकोने जरा होय अने शोक न होय ? [अ०] हे गौतम! पृथिवीकायिको शारीरिक वेदनाने अनुभवे छे, पण मानसिक वेदनाने अनुभवता नथी माटे तेओने जरा होय छे, पण लोक नथी होतो. ए प्रमाणे यावत् चतुरिंद्रिय जीवो सुधी जाणवुं. बाकीना जीवो माटे सामान्य जीवोनी पेठे समज. अने ए प्रमाणे यावत् वैमानिको सुधी कहेतुं. 'हे भगवन् ! ते एमज छे २' एम कही यावत् पर्युपासना करे छे. ।। ५६७ ।। ते काले २ सके देविंदे देवराया वज्रपाणी पुरंदरे जाव भुजमाणे बिहरह, इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं १२ विपुलेणं ओहिणा आभोरमाणे २ पासति समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे २ एवं जहा ईसाणे तइयसए तहेव सोबि नवरं आभिओगे ण सहावेति हरी पायन्ताणियाहिवई सुघोसा घंटा पालओ विमाणकारी पालगं बिमाणं For Private And Personal १६ शतके उद्देश २ ॥१३७०॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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