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________________ Shri Mahavir Jain Arher व्यारूपा प्रज्ञप्तिः ॥१३६८।। Kendra सेवं भंते । सेवं भंते! ति (सूत्रं ५६६) ।। १६-१ ।। [प्र० ] हे भगवन् ! शरीरो केटलां कलां ! [उ०] हे गौतम ! शरीरो पांच कक्षां के, ते आ प्रमाणे-१ औदारिक, यावत् ५ कार्मण. [प्र० ] हे भगवन् ! इंद्रियो केटली कही छे ? [उ०] हे गौतम! इंद्रियो पांच कहीं छे, ते आ प्रमाणे - १ श्रोत्रेद्रिय, यावत् ५ स्पन्द्रिय. [प्र०] हे भगवन् ! योजना केटला प्रकार कथा के ? [उ० ] हे गौतम! योगना त्रण प्रकार कथा के, से जा प्रमाणे- १ मनयोग, २ वचनयोग अने ३ काययोग. [प्र०] हे भगवन् ! औदारिक शरीरने गांधतो जीव अधिकरणी छे ? [उ०] | हे गौतम! ते अधिकरणी पण छे अने अधिकरण पण . [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के 'औदारिक' शरीरने बांधतो जीव अधिकरणी छे अने अधिकरण पण के' ? [अ०] हे गौतम! अविरतिने आश्रयी. अर्थात् अविरतिरूप हेतुयी पूर्व प्रमाणे यावत्-अधिकरण पण के. [प्र०] हे भगवन् ! औदारिक शरीरने बांधतो पृथ्वीकायिक जीव अधिकरणी के के अधिकरण के ? [[अ०] हे गौतम! पूर्व प्रमाणे जाणवुं. अने ए प्रमाणे यावत् मनुष्यो सुधी जाणं. ए प्रमाणे वैक्रिय शरीर संबधे पण समजनुं, पण रोमां ए विशेष के के जे जीवोने जे शरीर होय तेमना विषे ते शरीर संबन्धे कहे. [प्र०] हे भगवन् ! आहारक शरीरने बांधतो जीव अधिकरणी इत्यादि प्रश्न. [30] हे गौतम ? ते अधिकरणी पण के अने अधिकरण पण छे. [प्र० ] हे भगवन् । ते ए प्रमाणे शाहेतुथी कहो छो के ते यावत्- 'अधिकरण पण छे' ? [३०] हे गौतम! प्रमादने आश्रयी, अर्थात् प्रमादरूप कारणने लइने ते यावत्- 'अधिकरण पण छे.' ए प्रमाणे मनुष्य संबंधे पण जाणवुं. औदारिक शरीरनी पेठे वैजस शरीर संबंधे पण कहेतुं, पण तेमां विशेष एछे के, [ तैजस शरीर सर्व जीवोने होवाथी] सर्व जीबोने विषे ए प्रमाणे समज. एज प्रमाणे कार्मण शरीर विषे पण जाण www.kobatirth.org For Private And Personal Acharya Shri agarsuri Gyanmandir १६ पास उदेश १ ||12346
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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