SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir ब्याक्याप्रजाति १६ शतके उद्देश बन्युं छे, गरम लोढाने ठारवानी पाणीनी द्रोणी (इंडी) पनी हे अने अधिकरणशाला (लोहारनी कोड) बनी ते जीवोने पण कापिकी यावत् पांच क्रियाओ लागे के. ॥५६॥ का जीवेणं भंते ! कि अधिकरणी अधिकरणं, गोपमा जीवे अधिकरणीवि अधिकरणपि, से केणटेण भंते। * एवं बुबह जीवे अधिकरणीवि अधिकरणंपि!, गोयमा! अविरतिं पडच से तेजष्टेणं जाप अहिकरणपि ॥ नेरदए। णं भंते ! किं अधिकरणी अधिकरणं?, गोपमा! अधिकरणीवि अधिकरणंपि, एवं जहेच जीवे तहेव नेरहएपि, एवं निरंतरं जाव वेमाणिए ।। जीवे णं भंते! किं साहिकरणी निरहिकरणी ?, गोयमा! साहिकरणी नो निरवि करणी, से केणद्वेणं पुच्छा, गोषमा! अविरतिं पडल, से तेणटेणं जीवे नो निरहिकरणी एवं जाव वेमाणिए । जीवे णं भंते ! किं आयाहिकरणी पराहिकरणी तदुभयाहिकरणी, गोयमा! आपाहिकरणीवि पराहिकरणीवि तदुभयाहिकरणीचि, से केणटेणं भंते । एवं बुचा जाव तदुभयाहिकरणीवि, गोयमा! अविरतिं पशुध, से तेणटेणं जाव तदुभयाहिकरणीवि, एवं जाव बेमाणिए । जीवाणं भंते! अधिकरणे किं आपप्पओगनिव्वत्तिए परप्पयोगनिब्बत्तिए तदुभयप्पयोगनिमबत्तिए !,गोयमा आयप्पयोगनिब्बत्तिएवि परप्पयोगनिव्वत्तिएविताभयप्पयोगनिव्वसिएवि, से केणतुणं भंते! एवं बुबह, गोपमा। अविरतिं पडुच, से तेणद्वेणं जाव तदुभयप्पयोगनिब्यत्तिगवि, एवं जाव वेमाणियाणं (सूत्रं ५६५)॥ [प्र०] हे भगवन् ! जीव अधिकरणी अधिकरणवालो के अधिकरण उ०] गौतम! जीव अधिकरणी पण फिल्ड For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy