SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 437
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir F अधिकरणी ( एरण) उपर (हयोडो मारती बखते) वायुकाय उत्पन थाय! [उ०] गौतम हा, पाय. [प्र०मगवन्! ते व्याख्या वायुकायनो बीजा कोर पदार्थ साथे स्पर्श पाय तोज ते मरे के स्पर्श थया सिवाय पण मरे ? [उ.] हे गौतम ! तेनो वीजा पदार्थ १६ शतके ॥१३६३॥ रासाये स्पर्श थाय तोज मरे, पण स्पर्श थया सिवाय न मरे. [प्र०] हे भगवन् । (ज्यारे से वायुकाय मरण पामे त्यारे) ते शरीरसहित १३६॥ भवान्तरे जाप के शरीरहित जाय ! [३०] हे गौतम ! आवावतमा जेम स्कंदकना उद्देशकमां कडं के, ते प्रमाणे यावत् 'शरीररहित बईने जतो नथी' त्यांमुधी अहिं जाणवू.॥५६२॥ इंगालकारियाए णं भंते ! अगणिकाए केवतियं काल संचिट्ठति !, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उकोसेणं 81 |तिति राइंदियाई, अनेवि तत्य वाउयाए बकमति, न विणा पाउयाएणं अगणिकाए उज्जलति (व ५६३)॥ । [4] हे भगवन् ! सगडीमा अग्निकाय केटला काळ सुधी (सचेतन) रहे? [उ०] हे मौतम ! जघन्यथी अंताहूर्व मुधी अने उत्कृष्टथी त्रण रात्रिदिवस मुधी रहे. बळी त्यां अन्य वायुकायिक जीवो पण उत्पम थाय छे, कारणके वायुकाय विना अधिकाय प्रज्वलित पतो नथी. ॥ ५६३ ।। पुरिसे ण भंते! अयं अयकोसि भयोमएणं संहासएणं उब्धिहमाणे वा पब्धिहमाणे वा कतिकिरिए. | गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे अयं अयकोहंसि अयोमएणं संडासएणं उध्विहिति वा पब्बिाहिति वा सावं च ण से पुरिसे कातियाए जाच पाणाइवायकिरियाप पंचहि किरियाहिं पुढे, जेसिपिय गं जीवाणं सरीरेहितो अए निव्वत्तिए अयकोडे निव्वत्तिए संडासए निव्वत्तिए इंगाला निब्बत्तिया इंगालकहिणी नियत्तिया मत्था RAKESAR ACACLASREPX For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy