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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir उमेशा ॥१३१३॥ त्यारवाद मंखलिपुत्र गोशालक मुनक्षत्र अनगारने तपना तेजथी पाळीने त्रीजीवार श्रमण भगवंत महावीरने अनेक प्रकारना अनुचित वचनोथी आक्रोश करवा लाग्यो-इत्यादि पूर्वोक्त सर्व कहेवू, यावद-"तने माराथी मुख थवार्नु नथी." त्यारे श्रमण भगप्रालि का वान् महावीरे मंखलिपुत्र गोशालकने आ प्रमाणे कडं के 'हे गोशालक ! जे तेवा प्रकारना श्रमण अने ब्राह्मणर्नु [आर्य अने धार्मिक मुबचन सांभळे छे-इत्यादि] पूर्वोक्त कहे, ते तेनी यावत्-पर्युपासना करे छे, तो हे गोशालक! तारे माटे तो शु को!! में तने प्रवज्या आषी, यावत्-में तने बहुश्रुत कर्यो, अने ते मारी साधे मिथ्यात्व-अनार्यपणुं आदयु के. ते माटे हे गोशालक ! एम नहि कर, यावत्-ते आ तारीज प्रकृति छ, अन्य नथी.' श्रमण भगवंत महावीरे ए प्रमाणे कडं एटले ते मखलिपुत्र गोशालक अत्यंत गुस्से थयो, अने तेजस समुद्घात करी, सात आठ पगला पाछो खसी तेणे श्रमण भगवंत महावीरनो वध करवा माटे शरीरमांथी तेजोलेश्या बहार काढी. जेम कोह बातोत्कलिका [जे रही रहीने वायु वाय ते] के बंटोळीओ होय ते पर्वत, भीत, स्तंभ, के स्तूपवडे आवरण करायेलो के निवारण करायेलो होय तो पण तेने विषे समर्थ यतो नथी, विशेष समर्थ थतो नथी, ए प्रमाणे मंख लिपुत्र गोशालकनी तपोजन्य तेजोलेश्या श्रमण भगवंत महावीरनो वध करवा माटे शरीरमाथी बहार काढथा छतां तेने विषे समर्थथती नथी, विशेष समर्थ थती नथी, पण गमनागमन करे , गमनागमन करीने प्रदक्षिणा करे छ, प्रदक्षिणा करी उंचे आकाशमा उछळे छे, अने त्यांची स्वलित थईने पाछी फरती तपोजन्य तेजोलेश्या मंखलिपुत्र गोशालकना शरीरने पाळती वाळती तेना शरीकरनी अंदर प्रविष्ट थाय छे. त्यारवाद पोवानी तेजोलेश्यावडे परामवने प्राप्त थयेला मंखलिपुत्र गोशालके श्रमण भगवंत महावीरने आ प्रमाणे को-'हे आयुष्मन् काश्यप! मारी तपोजन्य तेजोलेश्याथी पराभवने प्राप्त थई छ मासने अन्ते पिचज्वरयुक्त शरीर के। For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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