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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४॥११॥ गोसाले मंखलिपुत्ते सव्वाणुभूति अणगारं तवेणं तेएणं एगाह कूडाहच जाव भासरासिं करेत्ता योपि समज्याधणं भगवं महावीरं उच्चावयाहिं आउसणाहिं आउसइ जाव सुहं नत्यि। १३१०॥ ते काळे अने ते समये श्रमण भगवंत महावीरना अन्तेवासी-शिष्य पूर्व देशमा उत्पन्न थयेला सर्वानुभूति नामे अनगार भद्र | प्रकृतिना अने यापद विनीत हता. ने पोताना धर्माचार्यना अनुरागथी आ गोशालकनी वातनी अश्रद्धा करता उठ्या, उठीने ज्या मंखलिपुत्र गोशालक हतो त्यां आवी मंखलिपुत्र गोशालकने आ प्रमाणे कधु-" हे गोशालक! जे तेवा प्रकारना श्रमण के बा. अणनी पासे एक पण आर्य-निर्दोष अने धार्मिक सुवचन सामळे छे ने पण तेने वंदन अने नमस्कार करे है, यावत् ते कल्याणकर | अने मंगलकर देवना चैत्यनी पेठे तेनी पर्युपासना करे छे; पण हे गोशालक! तारे माटे तो शुकहे, !!! भगवंते तने दीक्षा आपी, अर्थात् शिष्यरूपे स्वीकार कयों, भगवंते तने मुंब्या, भगवंते तने प्रतसमाचार शीखन्यो, भगवते तने शिक्षित कयों अने भगवते तने बहुश्रुत कयों, तो पण ते भगवंतनी साथे अनार्यपणुं आदर्यु छे ते माटे हे गोशालक ! एम नहि कर, हे गोशालक तुं एम करवाने योग्य नथी. आ तेज तारी प्रकृति छ, अन्य नथी." ए प्रमाणे सर्वानुभूति अनगारे का एटले ते मंखलिपुत्र गोशालक गुस्से थयो, अने सर्वानुभूति अनगारने पोताना तपना तेजथी एक प्रहारे करी कूटाघात-पाषाणमय यंत्रना आघातनी पेठे बाळी भस्म कर्या. त्यारवाद मंखलिपुत्र गोशालके सर्वानुभूति अनगारने पोताना सपना तेजथी एक पाए कूटाधानी पेठे भमराशि करीने पीजी वार पण श्रमण भगवंत महावीरने अनेक प्रकारनी आक्रोशना वडे आक्रोश को, यावत्-'माराथी तमने मुख थवानुनथी." तेणं कालेणं२ समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी कोसल जाणवए सुणक्खत्ते णाम अणगारे पगह SARKARIMAR TECREAM For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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