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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१४४२ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir राए, सेवं भंते । २ ॥ सूत्रं ६०७) ।। १७-८ ॥ [[प्र० ] हे भगवन् ! जे अकायिक जीव आ रत्नप्रभा पृथिवीमां मरणसमुद्घात करीने सौधर्मकल्पमां अष्कायिकपणे उत्पन्न यात्राने योग्य - इत्यादि प्रश्न. [उ०] जेम पृथिवी कायिकसंबन्धे कथं ने तेम अष्कायिकसंबन्धे पण बघा कल्पोमां कहेनुं, यावत्-ईषत्प्राग्भारा पृथिवीमां पण ते प्रमाणे उपपात कहेवो. तथा जेम रत्नप्रभाना अष्कायिक जीवनो उपपात को छे तेम यावत्-सातमी पृथिवीना अकायिकजीवन पण यावद - ईषत्प्राग्भारा पृथिवी सुधी उपपात कहेवो. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् । ते एमज छे.' ||६०७|| भगवद् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना १७ मा शतकमां आठमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. शतक १७. (उद्देशक ९) आउकाइए णं भंते! सोहम्मे कप्पे समोहए समोह० जे भविए इमीसे रयणप्पभाग पुढवीए घणोदधिवलएसु आउकाइयत्ताए उनवजित्तए से णं भंते! सेसं तं चैव एवं जाब आहेसत्तमाए जहा सोहम्मआउकाइओ एवं | जाव ईसिन्भारा आउकाइओ जाव आहेसत्तमाए उबवायव्वो, सेवं भंते ! २ || (सूत्रं ६०८) ।। १७-९ ॥ [प्र० ] हे भगवन ! जे अप्कायिक जीव सौधर्मकल्पमां मरणसमुद्घातने प्राप्त थईने आ रत्नप्रभाना घनोदधिवलयोमा अष्कावि कपणे उत्पन्न भवान योग्य छे, ते हे भगवन् !-इत्यादि प्रश्न. [30] बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवुं. एम यावत् अधः सप्तम पृथिवी सुधी जाण. जेम सौधर्मकल्पना अष्कायिकनो (नरक पृथिवीमां ) उपपात को तेम यावत् ईषत्प्राग्भार पृथिवीना अच्कायिक For Private And Personal १७ शतके उद्देवाः८-९ ॥१४४२७
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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