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________________ R Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥१४३७॥ [प्र०] भगवन् ! जीवोने जे दुःख छे ते \ आत्मकृत छ, परकृत छे के उभयकृत छ ? [30] हे गौतम जीवोने जे दुःख के ते आत्तकृत है, परकृत नथी, तेम उभयकृत पण नधी, प प्रमाणे दंडकना क्रमथी यावत्-वैमानिको सुधी जाणवू. [प्र०] है I उद्देशा४ भगवन् ! नीवो शुं आत्मकृत दुःख वेदे छे, परकत दुःख वेदे छे के तदुभयकृत दुःख वेदे छ ? [30] हे गौतम ! जीवो आत्मकृत 8॥१४३७॥ दुःख वेदे छ परकृत के उभयकृत दुःख वेदता नथी. ए प्रमाणे यावत्-वैमानिको सुधी जाण. [प्र०] हे भगवन् ! जीवोने जे वेदना छे ते शुं आत्मकृत छे, परकत छे-इत्यादि प्रश्न. [उ.] गौतम ! वेदना आत्मकृत छे, परकृत के उभयकृत नथी. ए प्रमाणे यावत्-वैमानिको सुधी जणवं. [१०] हे भगवन् ! जीवो शु आत्मकृत वेदनाने वेदे छे, परकृत वेदनाने वेदे छे के उभयकृत वेदनाने वेदे छ ? [उ.] हे गौतम ! जीवो आत्मकृत वेदनाने वेदे छे; परकृत के उभयकृत वेदनाने वेदता नथी. ए प्रमाणे यावत्-वैमानिको सुधी जाणवू. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे'. ॥६०३ ॥ भगवत सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना १७ मा शतकमां चोथा उद्देशानो मलार्थ संपूर्ण थयो. ECRACE ARRORCEBOOK शतक १७. (उद्देशक ५) कहि णं भंते ! ईसाणस्स देविंदस्स देवरन्नो सभा सुहम्मा पण्णत्ता, गोयमा! जंबुद्दीवे २ मंदरस्स पन्च-18 यस्स उत्तरेणं इमीसे रयणप्प. पुढ० बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उर्ल्ड चंदिमसूरिय जहा ठाणपदे जाव मसे ईसाणव.सए महाविमाणे से गं ईसाणषटेंसए महाविमाणे अद्धतेरस जोयणसयसहस्साई एवं जहा दस Fer Private And Persons
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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