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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१४१५।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir शतक १७. (उद्देशक १.) नमो देवया भगवईए || कुंजर १ संजय २ सेलेसि ३ किरिय ४ ईसाण ५ पुढवि ६-७ दग ८-९ वाज १०-११ | एमिंदिप १२ नाग १३ सुवन्न १४ विज्जु १५ वायु १६ ग्ग १७ सत्तर से || ७७ || (उद्देशक संग्रह) १ कुंजर- कोणिकना प्रधान हस्ती संबन्धे प्रथम उद्देशक, २ संयतादि संबन्धे बीजो उद्देशक, ३ शैलेशी प्राप्त अनगार संबन्धे बीजो उद्देशक, ४ क्रिया-कर्म संबन्धे चोथो उद्देशक, ५ ईशानेन्द्रनी सुधर्मासभा संबन्धे पांचमो उद्देशक, ६-७ पृथिवीकायिक संबन्धे छट्टो अने सातमो उद्देशक, ८-९ अकायिक संबन्धे आठमो अने नवमो उद्देशक, १०-११ वायुकायिक संबन्धे दशमो अने अगीयारमो उद्देशक, १२ एकेन्द्रिय जीव संबन्धे बारमो उद्देशक, १३-१७ नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार अने अधिकुमार संबन्धे अनुक्रमे तेरथी आरंभी सत्तर उद्देश को-ए प्रमाणे सत्तरमा शतकमां सत्तर उद्देशको कहेवामां आवशे. रायगिहे जाब एवं बयासी उदायी णं भंते । हत्थराया कओहिंतो अनंतरं उब्वद्दित्ता उदाहित्थिरायत्ताए उबवशो?, गोमा ! असुरकुमारेहिंतो देवेहिंतो अनंतरं उब्वहित्ता उदापि हत्थिरायत्ताए उववन्ने, उदायी णं भंते! हस्थिराया कालमासे कालं किया कहिं गच्छहिति कहिं उचयज्जिहिति? गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए उको ससागरोवमतियंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति, से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उच्चद्दित्ता कहिं ग० कहिं उ०१, गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं काहिति । भूयाणंदे णं भंते! हत्थराया For Private And Personal ११७ शतके उद्देशः १ ॥१४१५॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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