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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ।।१३९१ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir | तेणं देवेणं सा दिव्या देवड्डी जाव अभिसम० । गंगदत्तस्स णं भंते! देवरस केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ?, गो |यमा ! सत्तरससागरोवमाई ठिती, गंगदत्ते णं भंते । देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव महाविदेहे वासे सिनिहित जाय अंतं काहिति ॥ 'सेवं भंते! सेवं भंते 'ति । (सूत्रं ५७७ ) ॥ १६-५ ॥ ज्यारे ते मुनिसुव्रत स्वामीए वे गंगदत्त नामे गृहपतिने ए प्रमाणे क ं त्यारे ते हर्षयुक्त अने संतोषयुक्त थई मुनिसुव्रत स्वा मीने वांदी, नमी मुनिसुव्रत स्वामी पासेथी सहस्राम्रवण नामना उद्यानयी नीकळी जे तरफ हस्तिनापुर नगर के अने ज्यां पोतानुं घर छे त्यां आग्यो, आवीने विपुल अशन, पान-यात्रत् - तैयार करावी पोताना मित्र, ज्ञाति स्वजन वगेरेने नोवर्या. पछी स्नान करी पूरण शेठनी पेठे यावत्-पोताना मोटा पुत्रने कुटुंबमां मुख्य तरीके स्थापी पोताना मित्र, ज्ञाति स्वजन वगेरेने तथा मोटा पुत्रने पूछी हजार पुरुषबडे उपाडी शकाय तेवी शिविकामां बेसी, पोताना, मित्र, ज्ञाति स्वजन यात्रत् परिवारवडे तथा मोटा पुत्रवडे अनुसरातो सर्वं ऋद्धिसहित यावत्-वादिना थता घोषपूर्वक हस्तिनापुरनी वच्चावच्च निकली जे तरफ सहस्राम्रवण नामे उद्यान है, ते तरफ आवी तीर्थंकरना छत्रादि अतिशय जोई यावत्-उदायन राजानी पेठे यावद-पोतानी मेळेज पोताना घरेणा उतार्या अने पोतानी मेळेज पंचमुष्टिक लोच क्यों. त्यार बाद श्रीमुनिसुव्रतस्वामीनी पासे जई उदायन राजानी पेठे दीक्षा लीधी. यावत्-तेज प्रमाणे ते गडदच अणगार अगीयार अंगो भथ्यो, यावत्-एक मासनी संलेखना वडे साठ भक्त-त्रीश दिवस अनशनपणे वीतrat आलोचन - प्रतिक्रमण करी समाधिपूर्वक मरणसमये मृत्यु प्राप्त करी ते महाशुक्र कल्पमां महासामान्य नामना विमानमां उपपात | सभाना देवशयनीयमां यवात्-गंगदत्त देवपणे उत्पन्न थयो. पछी ते तुरतज उत्पन्न धयलो गंगद देव पांच प्रकारनी पर्याप्तिवडे For Private And Personal १६ शतके उद्देश:५ ।। १३९१ ॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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