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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१३८९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir संपरित भई पूर्वानुपूर्वी विचरता अने ग्रामानुग्राम विहरता यावत् - श्रीमुनिसुव्रत नामे अरहंत यावत्-जे तरफ सहस्राम्रवण नामनुं उद्यान हृतुं त्यां आध्या अने यावत् विहरवा लाग्या. सभा वांदवा मीक्ळी अने यावत् पर्युपासना करवा लागी. त्यारबाद ते गंगदत्त नामे बृहपति आवी रीसे श्रीमुनिसुव्रत स्वामी अध्यानी बात सांभली हर्षवाळो अने संतोषवाळो थई यावद - बलिकर्म करी शरीरने शणगारी पोतानाघरथी नीकळयो, नीकळी पगे वालीने हस्तिनापुर नगरनी दचोवच्च थई जे तरफ सहस्राम्रवण नामनुं उद्यान इतु अने ज्यां श्रीमुनिसुव्रत अरहंत इता त्यां आवी सुनिसुव्रत अरहंतने त्रण वार प्रदक्षिणा करी, यावत्-त्रण प्रकारनी पर्युपसासना | वडे पर्युपासना करवा लाग्यो. तए मुणिसुध्वए अरहा गंगदत्तस्स गाहावतिस्स तीसे य महतिजाव परिसा पडिगया, तए णं से गंगदत्ते गाहावती मुणिन्वयस्स अरहओ अंतियं धम्मं सोचा निसम्म हट्ठतुट्ठ० उद्वार उद्वेनि २ मुणिसुब्वयं अरहं चंदन नमसति वंदिता नमसित्ता एवं क्यासी-सदहामि णं भंते! निग्गंधं पावपणं जाव से जहेयं तुझे वदह, जं नवरं देवाणुपिया ! जेहपुत्तं कुटुंबे ठावेमि तए णं अहं देवाशुपियाणं अंतियं मुंडे जाव पव्वयामि, अहासुहं | देवाणुपिया ! मा पडिबंध करेह, त्यार पछी के श्रीमुनिसुव्रत स्वामीए ते गंगदच गृहपतिने तथा ते मोटी महासभाने धर्मकथा कही; यावत्-सभा पाछी गई. त्यार बाद ते गंगदत्त नामे गृहपति श्रीमुनिसुव्रत अरिहंत पासेथी धर्मने सांभळी, अत्रधारी हर्ष तथा संतोषयुक्त थई उभो थयो, उठीने श्रीमुनिसुव्रत स्वामीने वांदी, नमी आ प्रमाणे बोल्यो के हे भगवन् ! हुं निर्ग्रथना प्रवचनमां श्रद्धा करुं हुं यावत्- आप जे For Private And Personal १६ शतके उद्देश:५ ||१३८९॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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