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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandi खलु मे समणं भगवं महावीरं वंदित्ता जाब पज्जुबासित्ता इमं एयारूवं वागरणं पुच्छित्तएत्तिकहु एवं संपेहेइ व्याख्या४ा एवं, संपेहित्ता चउहिवि सामाणियसाहस्सीहिं परिवारो जहा मृरियाभस्स जाव निग्घोसनाइयरवेणं जेणेव १६ शतके प्रज्ञप्तिः जंबुद्दीवे २ जेणेव भारहे वासे जेणेव उल्लुयातीरे नगरे जेणेव एगजबूए चेइए जेणेव ममं अंतियं तेणेव पहारेत्य ॥१३८४॥ Pउद्देश:५ गमणाए, तए णं से सके देविंदे देवराया तस्स देवस्स तं दिव्वं देवहिं दिव्वं देव जुति दिवं देवाणुभागं दिव्वं ॥१३८४ तेयलेस्सं असहमाणे ममं अट्ठ उक्खित्तपसिणवागरणाई पुच्छह संभंतिय जाव पडिगए (सूत्रं ५७५) ॥ [प्र०] 'भगवन् ! एम कही पूज्य गौतम श्रमण भगवंत महावीरने वांदी, नमी आ प्रमाणे बोल्या के-हे भगवन् ! अन्य दिवसे | देवेन्द्र देवराज शक देवानुप्रिय आपने वंदन, नमन, सत्कार यावत्-पर्युपासना करे छे, पण हे भगवन् ! आजे तो ते शक्र देवेन्द्र देवराज देवानुप्रिय एवा आपने संक्षिप्त आठ प्रश्नो पूछी अने उत्सुकतापूर्वक वांदी नमी यावत्-केम चाल्यो गयो? [उ०] 'हे गौतम'! एम कही, श्रमण भगवंत महावीरे भगवंत गौतमने आ प्रमाणे कयु-हे गौतम ! ए प्रमाणे खरेखर ते काळे ते समये महाशुक्र कल्पना महासामान्य नामना विमानमां मोटी ऋद्धिवाळा, यावत्-मोटा मुखवाळा वे देवो एकज विमानमां देवपणे उत्पन्न थया, तेमां एक मायी मिथ्यारष्टि रूपे उत्पन्न थयो अने एक अमायी सम्यग्दृष्टिरूपे उत्पन्न थयो. त्यारपछी उत्पन्न थयेला ते मायिमिथ्यारष्टि देवे उत्पन्न थयेला अमायिसम्यग्दृष्टि देवने आ प्रमाणे कयु के-परिणाम पामता पुद्गलो 'परिणत' न कहेवाय, पण 'अपरिणत' कहेवाय. कारण के (हजी) ते परिणमे छे माटे ते परिणत नथी, पण 'अपरिणत' छे. त्यारवाद उत्पन्न थयेला ते अमायी सम्यग्दृष्टि देवे उत्पन्न थयेला ते मायी मिथ्यादृष्टि देवने कथु के, परिणाम पामता पद्गलो परिणत' कहेवाय, पण 'अपरिणत' न SHOROSCOURU SHUKRAHESHANKHE Fer Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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