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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandit व्याख्या १६शतके प्रहसि दाउदेश ॥१३७५॥ KARNER शतक १६. (उद्देशक ३) रायगिहे जाव एवं वयासी-कति णं भंते! कम्मपयडीओ पण्णत्ताओ?, गोयमा! अट्ठ कम्मपयडीओ पण्णत्ताओ, तंजहा-नाणावरणिज्न जाव अंतराइयं, एवं जाव वेमा । जीवे णं भंते ! नाणावरणिज्ज कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ वेदेति ?, गोयमा ! अट्ठ कम्मप्पगडीओ, एवं जहा पन्नवणाए वेदावेउद्देसओ सो व निरवसेसो भाणियव्यो, वेदाधोवि तहेव, बंधावेदोवि तहेव, पंधापंधोवि तहेच भाणियब्यो जाब वेमाणिया5 गंति । सेवं भंते ! २ जाव विहरति (सूत्रं ५७१) ॥ [प्र०] राजगृहमा (भगवान् गौतम) यावत् आ प्रमाणे बोल्या के-हे भगवन् ! केटली कर्मप्रकृतिओ कही १[30] है। | गौतम! आठ कर्मप्रकृतिओ कही छे. ते आ प्रमाणे-१ ज्ञानावरणीय, यावत् ८ अंतराय. ए प्रमाणे यावत वैमानिको सुधी जागवू. [प्र०] हे भगवन् ! कानावरणीय कर्मने वेदतो जीव बीजी केटली कर्मप्रकृतिओ वेदे के! [उ.] हे गौतम ! आठे कर्मप्रकृतिकोने वेदे छे. ए प्रमाणे अहीं प्रज्ञापनास्त्रमा कडेल 'वेदावेद' नामनो समग्र उद्देशक कडेवो. तथा तेज प्रकारे 'वेदाबंध' नामनो उद्देशक पण कडेवो. तेवीज रीते 'बंधावेद नामनो तथा 'बंधाध' नामनो उदेशक पण कडेवो. ए प्रमाणे यावद्वैमानिको सुधी जाणवू. है भगवन् ! ते एमज है, हे भगवन् ! ते एमज ' एम कही याव-विहरे छे. ।। ५७१ ॥ तए सबणे भगवं महावीरे अन्नदा कदापि राबगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेहयाओ पडिनिक्खमति छछर B oks For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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