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________________ A Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir प्रशतिः १३६ शतक १६. (उद्देशक १) अहिगरणी जरा कम्मे जावतियं गंगदत्त ५ सुमिणे य । उवओग लोग बलि ओही १.दीप उवही दिसा पणिया १४॥ ७६ ॥ | [उदेशकार्थसंग्रह-१ अधिकरणी-एरण प्रमुख संवन्धे पहेलो उद्देशक, २ जरादि अर्थ संबन्धे बीजो उद्देशक, ३ कर्म वगैरे | संबन्धे श्रीजो उदेशक, ४ उद्देशकना प्रारंभमा 'जावतिय' यावतिक शब्द होवाथी यावतिक नामे चोयो उदेशक, ५ गंगदत्त देव | संपन्धे पांचमो उद्देशक, ६खम विषे छहो उद्देशक, ७ उपयोग संबन्धे सातमो उदेशक, ८ लोकस्वरूप संबन्धे आठमो उद्देशक, ९पलीन्द्र संवन्धे नवमो उद्देशक, १. अवधिज्ञान संवन्धे दशमो उद्देशक, ११ दीपकुमार संबन्धे अगीयारमो उद्देशक, तथा १२ उदधिकुमार, १३ दिक्कुमार अने १४ स्तनितकुमार संबन्धे वारमाची चौदमा धी प्रण उद्देशको-ए प्रमाणे सोळमा शतकमां चौद उदेशको कहेबाना के. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-अस्थि गं भंते ! अधिकरणिसि बाउपाए बक्कमति !, इंता अस्थि, से मंते । किं पुढे उद्दाइ अपुढे उदाह, गोयमा! पुढे उदाह नो अपुढे उदाइ, से भंते ! किं ससरीरी निकसमइ असरीरी निक्वमह एवं जहा स्वंदए जाच नो असरीरी निक्स्वमह (सूत्रं ५६२)। [प्र.] ते काळे ते समये राजगृह नगरमां यावत् पर्युपासना करता ( भगवान् गौतम) आ प्रमाणे बोल्या के-के भगवन् ! NCERAKSHM RRAOK For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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