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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः । ११.९८॥ १वतके उद्देश: १०९८॥ गंसि नेरइयत्ताए उववजेज्जा?। समणे भगवं महावीरे वागरेइ-उववजमाणे उववन्नेत्ति वत्तव्वं सिया। अह भंते ! सीहे वग्घे जहा उस्मप्पिणीउद्दसए जाव परस्सरे एए णं निस्सीला एवं चेव जाव बत्तव्वं सिया, अह भंते ! ढंके कंके विलए मरगुए सिखीए, एएणं निस्सीला०, सेसं तं चेव जाव बत्तब्वं सिया।सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरह ।। (सूत्र ४६०) १२-८॥ [प्र०] हे भगवन् ! वानरवृषभ-मोटो वानर, मोटो कुकडो, अने मोटो देडको-ए बधा शीलरहित, व्रतरहित, गुणरहित, मर्यादारहित, प्रत्याख्यान अने पौषधोपवासरहित मरणसमये काल करी आ रत्नप्रभा पृथिवीमा उत्कृष्टथी सागरोपमनी स्थितिवाळा नरकमां नैरयिकपणे उत्पन्न थाय ? [उ.] श्रमण भगवंत महावीर कहे छे के ( हा नैरयिकरूपे उत्पन्न थाय, ) कारण के जे उपजतुं होय ते उत्पन्न थथु' एम कहेवाय. [प्र०] हे भगवन् ! सिंह, वाघ-वगेरे अबसपिणी उद्देशकमां कह्या प्रमाणे यावत्-परासर|ए बधा शीलरहित-इत्यादि यावत् (उ०) पूर्व प्रमाणे जाणवू. (प्र०) हे भगवन् ! कागडो, गीध, वीलक, देडको अने मोर-ए बधा शीलरहित-इत्यादि प्रश्न. (उ०) उत्तर पूर्ववत् जाणवू. हे भगवन् ! 'ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज '-एम कही यावद्विहरे छे. ।। ४६०॥ भगवत् सूधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना १२ मा शतकमां आठमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. ASHASABASSACREAL For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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