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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १५ ॥१४५ दीया जेबी, तेलनी कल्लीनी पेठे अत्यंत सुरक्षित, बसनी पेटीनी पेठे सारी रीते (निरुपद्रव स्थाने) राखेली अने रत्नना रंडीयानी पेठे सारी रीते रक्षण करायेली हथे. वे शीत, उष्ण, यावत्-परिसह अने उपद्रवो न पः माटे अत्यंत संगोपित-रक्षण करायेली दीडशे. मन्य कोई दिबसे ते ब्रामणपुत्री गर्मिषी यथे, अने समस्यायी पीयेर जता रस्तामा दवाधिनी याला बडे बळी मरणसमये १३५८॥ काळ करी दक्षिणदिशाना अग्निकुमार देवोमां देवपणे उत्पन थशे. | सेणं नतोहितो अणंतरं उध्वद्वित्ता माणुस्सं विग्ग भिहिति माणुस्सं २ केवलं मोहिं बुजिनहिति के.२ मुंडे भवित्ता आगारामओ अणगारियं पब्बाहिति, तस्वविय गं विरापियसामने कालमासे कालं किया दाहिणिलंसु असुरकुमारेसु देवेसु देवताए उववनिहिति,से णं तओहिंतो जाव उध्वहिता माणुसं विग्गहं तं चेव जाव तस्थविणं विराहियसामने कालमासे जाव किया दाहिणिल्लेम नागकुमारेमु देवेसु देवसाए उपजिहिति, से तओहितो अगंतरं एवं पएणं अभिलावेणं वाहिणिल्लेम सुबमकुमारेसु एवं वाहिणिल्लेस विज्जुकुमारेसु एवं | अग्निकुमारवजं जाब दाहिणिल्लेसु थणियकुमारेसु, से णं तओ जाव उध्वहिता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति जाब विराहियसामने जोइसिएम देवेसु उपवजिहिति, सेणं नओ अणतरं वयं पाता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति जाच अधिराहियसामने कालमासे कालं किया सोहम्मे कप्पे देवत्साए उबवनिहिति, से गंसओहितो अणंतरं चयं चहत्ता माणुस्सं विग्ग लभिहिति केवलं चोहिं बुजिमाहिति, तस्थवि णं अविराहियसामने कालमासे कालं [किवा ईसाणे कप्पे देवत्ताए उववजिहिति, सेणं नओ चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लाभाहिति, तस्थविणं BIGAME For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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