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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir RECSIABAR पारंवार जशे अने नीकळशे. ते वखते शतद्वार नगरने विष घना मांगलिक राजाओ, युवराजा यावत्-सार्थवाह प्रमुख एकबीजाने PM बोलावशे, बोलावीने कोशे के 'हे देवानुप्रियो । जेथी अमारा देवसेन राजाने श्रेत, निर्मल शंखतळना जेवो भने चार दांतवाळो उत्तम हल्ली उत्पन थयो , ते माटे हे देवानुप्रियो ! अमारा देवसेन राजानु त्रीजं नाम 'चिमलवाहन' हो. त्यारे ते देवसेना राजार्नु 'विमलवाहन' एवं त्रीजु नाम पडशे. स्वारवाद ते विमलवाहन राजा अन्य कोई दिवसे श्रमण निग्रन्थोनी साघे मिथ्यात्वअनार्यपणु आचरशे, केटलाएक श्रमण निग्रन्थोनो आक्रोश करशे, केटलाकनी हांसी करशे. केटलाएकने ज्दा पाडशे, केटलाएकनी निर्भर्त्सना करशे, केटलाएकने बांधशे, केटलाएकने रोकशे, केटलाएकना अवयवोनो बेद करशे, केटलाएकने मारने, केटलाएकने उपद्रव करशे, केटलाएकना वस्त्र, पात्र, कांवल अने पादच्छन छेदशे, विशेष छेदशे, मेदशे, अपहरण करशे; केटलाएकना भातपाणीनो विच्छेद करशे, केटलाएकने नगरथी पहार काढशे बने केटलाएकने देशथी बहार काढशे.ते समये शतद्वार नगरने विषे घणा मांडलिक राजाओ अने युवराजाओ यावत् परस्पर-कहेशे के 'हे देवानुप्रियो! ए प्रमाणे खरेखर विमलवाहन राजाए श्रमण निर्ग्रन्थोनी साथे मिथ्या-अनार्यपणुं स्वीकार्य छ, यावत्-केटलाएकने देशथी बहार काढे, ते माटे हे देवानुप्रियो। ए आपणने श्रेयरूप नथी, आ विमलवाहन राजाने श्रेयरूप नधी, तेमज आ राज्यने, आ राष्ट्रने, पलने, वाहनने, पुरने, अन्तःपुरने के देशने श्रेयरूप नथी के जे विमलवाहन राजाए श्रमण निग्रन्थोनी साये मिथ्या-अनार्यपणु स्वीकार्य छे. ते माटे हे देवानुप्रियो । आपणे विमलवाहन राजाने आ पात जणाववी योग्य है.' एम विचारी एकनीजानी पासे आ वातनो स्वीकार करे थे, स्वीकार करीने ज्यां विमलबाहन राजा के त्वां आवे के, त्यां आवीने करतल परिग्रहीत करीने-हाथ जोडीने विमलवाहन राजाने जय अने विजयधी For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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