SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या. प्रज्ञप्तिः ॥१३४० ॥ www.kobatirth.org जाब महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं करेहिति । एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कोसलजाणवर सुनते नामं अणगारे पगड़भद्दए जाब विणीए से णं भंते! तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं परिताबिए समाणे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए कर्हि उबबसे ?, एवं खलु गोषमा ! ममं अंतेवासी सुनक्खसे नामं अणगारे पगइभद्दए जाव विणीए से णं तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेण तवेणं तेएणं परितारिए समाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेत्र उबा० २ वंदति नम० २ सयमेव पंच महब्वयाई आरुभेति सयमेव पंच महब्वयाई० समणा य समणीओ य खामेति २ आलोइयपडिते समाहिपत्ते कालमासे कालं किवा उ चंदिमसूरियजाव आणयपाणयारणए कप्पे बीईवइत्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उबबन्ने, तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं बावीसं साग रोमाई ठिली पण्णत्ता, तत्थ णं सुनक्खत्तरसवि देवरस बाबीसं सागरोवमाई सेसं जहा सव्वाणुभूतिस्स जाव अंतं काहिति ॥ ( सूत्रं ५५८ ) । [प्र० ] भगवान् गौतमे भगवन् !' एम कही भ्रमण भगवान् महावीरने वंदन अने नमस्कार करी ए प्रमाणे कछुए प्रमाणे खरेखर देवानुप्रिय एवा आपना अन्तेवासी पूर्वदेशमां उत्पन्न थयेला सर्वानुभूति नामे अनगार जे प्रकृतिना मद्र हता, यावत्-विनीत हे भगवन् ! ज्यारे तेने मंखलिपुत्र गोशालके तपना तेजथी भस्मराशिरूप कर्या त्यारे ते मरीने क्यां गया, क्या उत्पन्न ? [O] "ए प्रमाणे खरेखर हे गौतम! मारा अन्तेवासी पूर्वदेशोत्पन्न सर्वानुभूतिनामे अनगार प्रकृतिना भद्र यावद - विनीत हता, तेने ज्यारे मंखलिपुत्र गोशाल के भस्मराशिरूप कर्या त्यारे ते ऊर्ध्वलोकमां चन्द्र अने सूर्यने, यावत्-ब्रह्म, लान्तक अने महाशुक्र हता, For Private And Personal Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १५ के उदेश १
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy