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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २, तए णं से सीहे अणगारे रेवतीए गाहावतिणीए गिहाओ पडिनिक्स्वमति० २ मेंढियगाम नगरं मज्झमझेणं fariच्छति निरगच्छत्ता जहा गोयमसामी जान भन्तवाणं पडियंसेति २ समणस्स भगवओ महावीरस्स पार्णिसि तं सत्यं संमं निस्सिरिति, तए णं समणे भगवं महावीरे अमुच्छिण जाव अणज्झोवबसे बिलमिव पन्नगभूषणं अप्पाणेण तमाहारं सरीरकोद्वगंसि पक्वियति, तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स तबाहारं आहारि| मस्स समाणस्स से विपुले रोगायंके विप्पामेव उवसमं पत्ते हट्ठे जाए आरोगे बलिपसरीरे तुट्ठा समणा तुट्ठाओ समणीओ तुट्टा मावया तुट्ठाओ सावियाओ तुट्ठा देवा तुट्टाओ देवीओ, सदेवमणुग्रासुरे लोए हट्ठे तुट्ठे जाए सम भगवं महावीरे हट्ट० २ । (सूनं ५५७) ।। व्याख्या प्रज्ञप्तिः ।। १३३८ ।। Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir त्यारे ते सिंह अनगारे रेवती गृहपत्नीने एम कनुं "ए प्रमाणे खरेखर तमे श्रमण भगवंत महावीरने माटे वे कोहळा संस्कार करी तैयार कर्या छे, देनुं प्रयोजन नथी, परन्तु बीजो गइकाले करेलो मार्जारकृत ( मार्जारवायुने शमावनार ) बीजोरापाक के तेने आपो, तेनुं प्रयोजन छे.” त्यारे ते रेवती गृहपत्नीए सिंह अनगारने ए प्रमाणे कछु - "हे सिंह ! कोण आ ज्ञानी के तपस्वी छे के जेणे तने आ रहस्य (गुप्त) अर्थ तुरत कह्यो, अने जेथी तुं जाणे छे ?' ए प्रमाणे स्कन्दकना अधिकारमां का प्रमाणे अहिं कहेनुं, यावत्- जेथी (भगवंतना कथनथी) हुं जाणुं छु. त्यारे ते रेवती गृहपत्नी सिंह अनगारनी ए बात सांभळी, हृदयमां अवधारी हृष्ट अने संतुष्ट थई ज्यां भक्तगृह-रसोखं छे त्यां बावीने पात्र नीचे मूके के पात्र नीचे मूकीने ज्यां सिंह अनगार छे त्यां आवे छे त्यां आवीने सिंह अनगारना पात्रने विषे ते सर्व (बीजोरापाक) आपे छे. ते समये ते रेवती गृहपत्नीए द्रव्यशुद्ध एवा यात्रत्-ते दानवडे For Private And Personal ११५ के उद्देश १ ।। १३३८ ॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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