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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १५ शतके जाणेत्ता बामे पालावी जाव जिणसास रीए सिंघ लहेति एवं संपेहित्ता आजीविए थेरे सद्दावेह आ०२ उच्चावयसवहसाबिए करेति उच्चा०२ एवं वयासी-नो खलु व्याख्या| अहं जिणे जिणप्पलावी जाच पकासेमाणे विहरंति, अहन्नं गोसाले मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव उमेश ॥१३२९॥ कालं करेस्सं, समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव जिणसई पगासेमाणे विहरह, तंतुझे णं देवाणु-18३२९॥ | प्पिया! ममं कालगयं जाणेत्ता वामे पाए सुंबेणं बंधह वा०२ तिक्खुत्तो मुहे उढुहह ति०२ सावस्थीए नगघरीए सिंघाडगजाब पहेसु आकडिवि किड़ि करेमाणा महया २ सद्देणं उग्घोसेमाणा उ• एवं बदह-नो खलु देवा गुप्पिया! गोसाले मंस्खलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाच विहरिए, एसणं गोसाले चेव मंग्वलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालगण, समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव विहरह महया अणिडीअसक्कारस. मुदएणं मम सरीरगस्स नीहरणं करेजाह, एवं वदित्ता कालगए (सूत्रं ५५५)। हवे ते मंखलिपुत्र गोशालकने सात रात्री परिणमतां-व्यतीत थतां सम्यक्त्व प्राप्त थयु, अने तेने आया प्रकारनो अध्यवसाय संकल्प उत्पम थयो-"हुँ खरेखर जिन नथी, तो पण जिनप्रलापी, यावत् जिन शब्दने प्रकाशतो विहयों ९.९ श्रमणनो घात करनार, श्रमणने मारनार, श्रमणनो प्रत्वनीक-विरोधी, आचार्य अने उपाध्यायनो अपयश करनार, अवर्णवादकारक अने अपकीर्ति करनार मंखलिपुत्र गोशालक मु. तथा घणी असद्भावनावडे अने मिथ्यात्वाभिनिवेशवडे पोताने, परने अने बने व्युबाहितप्रान्त करतो, व्युत्पादित (मिथ्यात्वयुक्त) करतो विहरीने मारा पोतानी तेजोलेश्यावडे पराभव पामी सात रात्रीना अन्ते पित्तज्वरथी म्यात शरीरवाळो थई दाइनी उत्पत्तिथी छबावखामाज काल करीश. श्रमण भगवान् महावीर जिन के अने जिनप्रलापी यावत् For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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