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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याक्याभवतिः ॥१३१५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir | स्वविरोने वंदन - नमस्कार करी अत्यन्त पासे नहि तेम अत्यंत दूर नहि एम बेसी पर्युपासना करवा लाग्यो. 'हे अपुल ।' एम कही आजीविक स्थविरोए आजीविकोपासक अयंपुलने ए प्रमाणे क- "हे अयंपुल 1 खरेखर तने मध्यरात्रिना समये यावत्-केवा आकारवाळी हल्ला कहेली के ? ( एवो संकल्प थयो इतो १ ) त्यारपछी तेने बीजीवार आया प्रकारनो आ संकल्प थयो हतो ? - इत्यादि पूर्वोक्त सर्व कहेनुं, यावत्-श्रावस्ती नगरीना मध्यभागमां ज्यां हालाहला कुंभारणनुं कुंभकारापण के अने ज्यां आ स्थान है, त्यां तुं शीघ्र आयो. हे अर्थपुल ! खरेखर आ बात सत्य के ? हा सत्य छे, हे अयंपुल ! चली तारा धर्माचार्य अने धर्मोपदेशक मंखलिपुत्र गोशालक हालाहला कुंमारणना कुंभकारापणामां आम्रफल हाथमां लह यावत् - अंजलि करता निहरे छे, तेमां पण ते भगवान् आठ चरमनी प्ररूपणा करे छे. ते आ प्रमाणे- १ चरमपानक०, यावत् सर्व दुःखनो अन्त करशे, वळी हे अयंपुल ! तारा धर्माचार्य अने धर्मोपदेशक संखलिपुत्र गोशालक शीतल माटीना पाणीवडे यावत्-शरीरने छांटता यावत्-विहरे छे, तेमां | पण ते भगवान् चार पानक अने चार अपानक प्ररूपे छे. पानक केवा प्रकारे छे ? यावत्-त्यारपछी ते सिद्ध थाय छे, यावत्'सर्व दुःखोनो अन्त करे ले,' ते माटे हे अयंपुल ! तुं जा, अने आ तारा धर्माचार्य अने धर्मोपदेशक मंखलिपुत्र गोशालक ने आवा प्रकारनो आ प्रश्न पूछजे.' तणं से अयंपुले आजीवियोवासए आजीविएहि थेरेहिं एवं पुत्ते समाणे हद्वतुट्ठे उट्ठाए उद्वेति उ० २ जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव पहारेत्थ गमणाए, तप णं ते आजीविया येरा गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंबकूणगएढावणट्टयाए एगंतमंते संगारं कुब्बह, तर णं गोसाले मंखलिपुते आजीवियाणं चेराणं संगारं परिच्छ For Private And Personal १५ शतके उद्देशः १ ।। १३२५॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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