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________________ Shri Mahavir Jain Al k endra www.kobatirth.org व्याख्याप्रज्ञप्तिः tegarsuri Gyanmance १२वतके उद्देश ७ १०९२॥ Acharya Shri शकमां कह्या प्रमाणे नरकादिना आवासो कहेवा, ए प्रमाणे यावत्-अनुत्तरविमान, यावत्-अपराजित अने सर्वार्थसिद्ध सुधी जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! आ जीव आ रत्नप्रभा पृथिवीमा अने तेना त्रीश लाख नरकावासोमांना एक एक नरकावासमां पृथ्वीकायिक | पणे, यावद्-वनस्पतिकायिकपणे, नरकपणे, नरयिकपणे, पूर्व उत्पन्न थएलो के ? [उ०] हा, गौतम ! अनेकवार अथवा अनंतवार पूर्वे उत्पन्न थयेलो छे. [प्र.] हे भगवन् ! सर्व जीवो पण आ रत्नप्रभा पृथिवीमां अने तेना त्रीस लाख नरकावासमांना (एक एक नरकावासमां पृथिवीकायिकपणे, यावद्-वनस्पतिकायिकपणे यावत्-पूर्वे उत्पन्न थएला छे ? [उ.] पूर्वे कह्या प्रमाणे त्यां अनेकवार अथवा) यावत्-अनंतबार पूर्व उत्पन्न थएला . [प्र०] हे भगवन् ! आ जीव शर्कराप्रभाना पचीस लाख नरकावासमांना एक एक नरकावासमां पृथिवीकायिकपणे यावत्-पूर्व उत्पन्न थएलो वे ? [उ०] जेम रत्नप्रभाना बे आलापक कह्या तेम शर्कराप्रभाना पण (एक जीव अने सर्व जीव आश्रयी) बे आलापक कहेवा. ए प्रमाणे यावत्-धूमप्रभा सुधी आलापक कहेवा. __ अयन्नं भंते ! जीवे चोसट्ठीए असुरकुमारावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि असुरकुमारावासंसि पुढ विकाइयत्ताए जाव वणस्मइकाइयत्ताए देवत्ताए देवीत्ताए आमणसयणभंडमत्तोवगरणत्ताए उववन्नपुब्वे?, हंता गोयमा! जाव अणंतखुत्तो, सव्वजीवावि णं भंते ! एवं चेव, पवं जाव धणियकुमारेसु, नाणत्तं आवासेसु, आवासा पुब्वभणिया, अयन्नं भंते ! जीवे असंखेजसु पुढविक्काइयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि पुढविकाइयावासंसि पुढविकाइयत्ताए जाव वण. उववन्नपुब्वे ?. हंता गोयमा! जाव अणतखुत्तो, एवं सव्वजीवाबि, एवं जाव वणस्मइकाइएसु, अयणं भंते ! जीवे असंखेजेसु बेंदियावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि बेंदियावामंसि पुढ विकाइयत्ताए जाव वणस्मइकाइयत्ताए RAHMACARKA5 For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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