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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रशतिः ॥१२७३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir भविस्सती तिकडु कोल्लागसन्निवेसे सभितरवाहिरिए ममं सव्वओ समता मग्गणगवेसणं करेइ ममं सवओ जाव करेमाणे कोल्लागसंनिवेसस्स बहिया पणियभूमीए भए सद्धिं अभिसमन्नागए, तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते हह्तुट्टे ममं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं जाय नमसित्ता एवं वयासी तुज्झे णं भंते! मम धस्मायरिया अहन्नं भंते! तुझं अंतेवासी, तए णं अहं गोयमा ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयमहं पडिझुणेमि, नए णं अहं गोषमा ! गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं सद्धि पणियभूमीए छब्बासाई लाभं अलाभं सुखं दुक्खं मक्कारमसकारं पचणुभवमाणे अणिञ्चजागरियं विहरित्था ( सूत्र ५४१ ) ॥ स्यारबाद मंखलिपुत्र गोशालके मने तन्तुवायनी शाळामां नहि जोवाथी राजगृह नगरनी बहार ने अंदर चोतरफ मारी गवेषणा तपास करी, परंतु मारी क्यांड पण श्रुति, क्षुति-शब्द के प्रवृत्ति नहि मळवाथी ज्यां तन्तुवायनी शाळा हती त्यां ते गयो, त्यां जईने तेणे शाटिका- अंदरना वस्त्रो, पाटिका उपरना वस्त्रो, कुंडीओ, उपानह - पगरखां अने चित्रपटने ब्राह्मणोने आपीने दाढी अने मुंछनुं मुंडन करायं. त्यारबाद तन्तुवायनी शाळा थकी नीकळी नालंदाना बाहेरना मध्य भागमां थई ज्यां कोल्लाक नामे सन्निवेश छे त्यां आव्यो. त्यारपछी कोलाक सभिवेशनां बहारना भागमां घणा माणसो परस्पर आ प्रमाणे कहे छे, यावत् प्ररूपे ले के - 'हे देवानुप्रियो ! बहुल नामे ब्राह्मण धन्य हे' इत्यादि पूर्वे का प्रमाणे कहेतुं यावत्- 'बहुल ब्राह्मणनो जन्म अने | जीवितव्यनुं फळ प्रशंसनीय छे.' ते वखते घणा माणसो पासेथी आ बात सांभळीने अने अवधारीने मंखलिपुत्र गोशालकने आवा प्रकारनो आ विचार यावद - उत्पन्न थयो 'मारा धर्माचार्य अने धर्मोपदेशक श्रमण भगावन महावीरने जेवी ऋद्धि, युति - तेज, For Private And Personal १५ शतके उद्देवाः १ ।। १२७३॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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