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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir पाच्या प्राप्ति पर 57 डोशाल ५॥१२५011 | गोयमा!ग पलिओवमं ठिती पण्णत्ता। सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहरनि (सूत्र ५३३) ॥ १४-८॥ [प्र.] हेभगवन् ! शु एम छे के जंभक देवो ते जुंभक (खच्छन्दचारी ) देवो छ ? [उ०] हा, गौतम! एम छे. [प्र०] हे भगवन् ! क्या हेतुथी ज़ुभकदेवो ए 'जुभकदेवों (खच्छन्दचारी देवो) कहेवाय! [उ०] हे गौतम ! मुंभकदेवो हमेशा प्रमोदवाळा, अत्यन्त क्रीडाशील, कंदर्पने विषे रतिवाळा अने मैथुन सेवबाना स्वभावबाळा होय हे, जे ते देवोने गुस्से थयेला जुए के, ते पुरुषो घणो अपयश पामे छ, तथा जेभो ते देवोने तृष्ट थयेला जुए के तेओ घणो यश पामे छे, माटे हे गौतम! ते हेतुथी जमकदेवो ए'जुंभकदेवों' एम कहेवाय . [प्र.] हे भगवन् ! जंभक देवो केटला प्रकारना कह्या छ ? [उ०] हे गौतम ! दश प्रकारना का छ-१ अन्नज़ुभक, २ पानजभक, ३ वस्त्रजुंभक, ४ गृहज़ंभक, ५ शयनमक, ६ पुष्पभक, ७ फलज़ंभक, ८ पुष्प-फलजुंभक, विद्याजुभक,अने १० अध्यक्तनँभक. [म०] हे भगवन् ! जंभक देवो क्या वसे छे! [उ०] हे गौतम ! तेओ (जुभक) बधा की दीर्घ वैताढयोमां, चित्र, विचित्र, यमक अने समक पर्वतोमा तथा कांचनपर्वतोमा वसे छे. [प्र०] हे भगवन् ! जंभक देवनी स्थिति केटला काळनी कही ने ? [उ०] हे गौतम । तेनी एक पल्योपमनी स्थिति कही छे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे'-एम कही भगवान गौतम यावद् विहरे छे. ॥ ५३३ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना १४ मा शतकमां आठमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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