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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir हा देवा देवत्ताए उववक्षा । सेवं भंते ! २ त्ति (सूत्रं ५२३) ।। १४-७ ॥ व्याख्या १४वतके PI प्राप्ति [म.] हे भगवन् ! अनुत्तरौपपाति देवो २ छे ? [उ.] हा गौतम ! छे. [प्र०] हे भगवन् ! शा हेतुथी अनुत्तरौपपातिक देवो उदेवा ॥१२५३॥ Bा 'अनुत्तरौपपातिक' एम कहेवाय छ ? [उ०] हे गौतम : अनुत्तरौपपातिक देवोनी पासे अनुत्तर शन्दो, यावत्-अनुत्तर स्पर्शो होय 8/॥२४॥ छे, माटे हे गौत्तम ! ते हेतुथी यावद् तेओने अनुत्तरौपपातिक देवो कहेवामां आवे छे. [प्र.] हे भगवन् ! केटलं कर्म बाकी | रहेवाथी अनुत्तरौपपातिक देवो अनुत्तरोपपातिकदेवपणे उत्पन्न थाय! [उ०] हे गौतम ! श्रमण निर्ग्रन्थ छट्ठ भक्तवडे जेटला कर्मनी निर्जरा करे तेटलं कर्म वाकी रहेवाथी अनुत्तरोपपातीक देवो अनुत्तरोपपातिकदेवपणे उत्पन्न थाय ने. 'हे भगवान् ! ते एमज के पाहे भगवान् ! ते एमज के एम कही [ भगवान् गौतम] यावद् विहरे के ॥ ५२६ ॥ भगवद सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतासूत्रना १४ मा शतकमा सातमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशक ८. इमीसे ण भंते ! रयणप्पमाए पुढवीग सकरप्पभाए य पुढवीए केवतियं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते !, गोयमा! असंखेन्जाई जोयणसहस्साई अवाहाए अंतरे पण्णत्ते, सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए बालुयप्पभाए य पुढवीए केवतिय एवं चेच, एवं जावतमाए अहेसत्तमाए य, अहेसत्तमाए णं भंते ! पुढवीए अलोगस्स य केवतियं आधालहाए अंतरे पण्णत्ते ?, गोयमा! असंखेजाई जोयणसहस्साई आवाहाए अंतरे पण्णत्ते । इमीसे णं भंते ! रयण For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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