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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir प्रातिः राता, पीया अने शुक्ल पुद्गलद्रव्य संपन्चे पण जाणवं. ए प्रमाणे सुगवी, दुर्गंधी, कटुक यावद् मधुर द्रव्य संबन्धे तथा कर्कश (बरसठ) ब्बाकया-1 यानद्-रुक्ष पुद्गलद्रव्य संबन्धे जाणवं. औदयिक भाव औदपिक भावनी साथे भाववी तुल्य छे.औदायक भाव सिवायना बीजाभाव साये सारसक भावधी तुल्य नथी. ए प्रमाणे औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक तथा पारिणामिक भावसंबन्धे जाणवू.सांनिपातिक(अनेक भावना * ॥१२४०॥ उदेश मळवावडे थयेला)माव सांमिपातिक भावनी साथे भावथी तुल्य के ते हेतुथी हे गौतम! एम कहेवाय छे के भावतुल्य ए'भावतुल्य छे. 18/॥१४॥ से केणतुणं भंते! एवं चुच्चह-संठाणतुल्लए २१, गोयमा! परिमंडले संठाणे परिमंडलस्स संठाणस्स संठाणओ लातुल्ले, परिमंडलसंठाणवइरित्तस्स संठाणओ नो तल्ले, एवं वट्टे संसे चउरंसे आयए, समचउरंससंठाणे समचउरंस स्स संठाणस्स संठाणओ तुल्ले, समचउरंसे संठाणे समचउरससंठाणवइरित्तस्स संठाणस्स संठाणओ नो तुल्ले, एवं सापरिमंडले, एवं जाव हुंडे, से तेण. जाव संठाणतुल्लए सं. २ (सूत्रं ५२३) ।। [प्र०] हे भगवन् ! शा हेतुथी एम कहेवाय के के-संस्थानतुल्य ए 'संस्थानतुल्य' छ । [उ०] हे गौतम ! (१) परिमंडलसंस्थान परिमंडलसंस्थाननी साथे संस्थानवडे तुल्य छ, परिमंडलसंस्थान ते शिवायना बीजा संस्थाननी साथे संस्थानवडे तुल्य नथी. |ए प्रमाणे (२) वृत्त (गोळ) संस्थान, (३) व्यस्र (त्रिकोण) संस्थान, (४) चतुरस्र-चोरससंस्थान अने (५) आयत लांबुं संस्थान पण जाणवू. तथा समचतुरस्र संस्थान समचतुरस्र संस्थाननी साथे संस्थानथी तुल्य के, पण समचतुरस्र सिवायना बीजा संस्थाननी तु संस्थानथी तुल्य नथी. ए प्रमाणे न्यग्रोधपरिमंडल, अने यावत्-हुंड संस्थान सुधी जाणवं. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी यावत्-संस्था तुल्य ए 'संस्थानतुल्य' कहेवाय छे. ॥५२३ ।। AAAAAR For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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