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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१२३४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir जाब पाणओ अच्चुओ नवरं जो जस्स परिवारो मो तस्स भाणियन्बो, पासायञ्चत्तं जं सरसु २ कप्पेसु विमा| णाणं उच्चत्तं अद्धद्धं विस्थारो जाव अचुयस्स नवजोयणसघाई उड्डुं उच्चत्तेणं अद्धपंचमाई जोयणसयाई विक्खंभेण, तत्थ णं गोयमा ! अच्चुए देविंदे देवराया दसहिँ सामाणियसाहस्सीहिं जाव विहरइ, सेस तं चेव, सेवं भंते । २ ति ( सूत्रं ५२० ) ।। १४-६ ।। [प्र० ] हे भगवन् ! देवेन्द्र अने देवनो राजा ईशान दिव्य भोगोने भोगवत्रा इच्छे त्यारे ते केवी रीते भोगवे ? [उ० ] जेम शक्र संबन्धे कयुं तेम ईशान संबन्धे पण समग्र कहेवुं. ए प्रमाणे सनत्कुमारने विषे पण जाणवुं, परन्तु विशेष ए के के, ए प्रासादावर्तक उचाईमा छसो योजन अने पहोळाइमां त्रणसो योजन छे. तथा ते मणिपीठिकानी उपर एक मोडं सिंहासन सपरिवार - पोताना परिवारने योग्य आसनो सहित विकुर्वे -इत्यादि कहेतुं तेमां देवेन्द्र अमे देवनो राजा सनत्कुमार बद्दोंतेर हजार सामानिक देवो साथै यावत् बे लाख अठ्यासी हजार आत्मरक्षक देवो साथे, अने सनत्कुमार कल्पमा रहेनारा घणा वैमानिक देवो अने देवीओ साधे परिवृत थह (मोटा गीत अने वादित्रना) शब्दोवडे यावत्-विहरे छे. ए प्रमाणे जेम सनत्कुमार संबन्धे कनुं, तेम यावत् प्राणत तथा अच्युत देवलोक सुधी जाणबुं. परन्तु विशेष ए के के, जेनो जेटलो परिवार होय तेनो तेटलो अहिं कहेवो. पोतपोताना कल्पना विमानोनी उंचाइना जेटली प्रासादनी उंचाई जाणवी, अने उंचाइना अडधा भाग जेटलो तेनो विस्तार जाणवो, यावत्-अच्युत देव| लोकनो प्रासादावतंसक नवसो योजन उंचो छे, अने साडाचारसो योजन पहोळो छे. तेमां हे गौतम । देवेन्द्र देवराज अच्युत दश हजार सामानिक देवो साधे यावद् - विहरे छे. बाकी वधुं पूर्व प्रमाणे जाणवुं. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे' For Private And Personal १४वके उद्देशः ६ |||१२३४ ॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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