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________________ Shri Mahavir Jain Al lendra www.kobatirth.org Acharya Shri garsuri Gyanmandie व्याख्या प्रशतिः ॥१२१२॥ ४ा उद्देशा ॥१२१२॥ PANCHARASHTRA खेदोववनगा परंपर खेदोववनगा अणंतरपरंपरखेदाणुववन्नगा?, गोयमा! नेरहया एवं एएणं अभिलावणं ते चेत्र चत्तारि दंडगा भाणियठवा । सेवं भंते । सेवं भंतेत्ति जाव विहरह (सूत्रं ५०२) ॥ चोदसमसयस्स पढमो १४.१॥ [प्र.] हे भगवन् ! अनन्तरनिर्गत नारको शुं नरकायुष बांधे, के यावद्-देवायुष बांधे, [उ०] हे गौतम ! तेओ नरकायुष न बांधे, यावत्-देवायुष न बांधे. [प्र०] हे भगवन् ! परंपरनिर्गत नारको शुं नरकायुष बांधे-इत्यादि प्रश्न. [उ.] हे गौतम! तेओ नरकायुष पण बांधे, यावत्-देवायुष पण बांधे. [सं०] हे भगवन् ! अनन्तरपरंपरानिर्गत नारको शुं नारकायुष बांधे-इत्यादि प्रश्न. [उ.] हे गौतम ! तेओ नरकायुष न बांध, यावद् देवायुष पण न बांधे. (कारणके अनन्तरपरंपरा निर्गत नारको विग्रहगतिने विषे होय छे अने त्या आयुषनो बन्ध थतो नथी.) ए प्रमाणे समग्र यावद् वैमानिको सुधी जाणवू. [म०] हे भगवन् ! नैरयिको शु अनन्तरखेदोपपन्न (समयादिना अन्तररहित प्रथम समये जेओनो दुःखयुक्त उत्पाद छे एवा छे, परंपरखेदोपपन्न (जेओना खेदयुक्त उत्पादमां बे-त्रण इत्यादि समयो थयेला छे एवा) के अनन्तरपरंपरखेदानुपपन्न (जेओनी उत्पत्ति अनन्तर-तुरतज अने परम्पर खेदवडे नथी तेवा) ? [उ.] हे गौतम! ए नैरपिको अनन्तरखेदोपपन्न-इत्यादि प्रणे प्रकारना छे. ए प्रमाणे ए अमिलापथी पूर्व प्रमाणे चार दंडको कहेवा हे भगवन् ! ते एमज के, हे भगवन् ! ते एमज छे. एम कही भगवान् गौतम यावत्-विहरे छ.।।५०२॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना १४ मा शतकमा प्रथम उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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