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________________ Shri Mahavir Jain Are ndra Acharya Sh agarsuri Gyarmandie www.kobatirth.org नेरइया णं भंते ! कि अणंतरोववनगा परंपपरोक्वनगा अणंतरपरंपरअणुववनगा?, गोषमा! नेर० अणंतबाक्या- रोववन्नगावि परंपरोववन्नगावि अणतपरंपरअणुववनगावि, से केण एवं बु.जाव अणंतरपरंपरअणुववन्नगावि, शके प्राप्तिः । गोयमा! जे ण नेरइया पढमसमयोववन्नगा ते ण नेरड्या अणंतरोववन्नगा, जे ण नेरहया अपढमममयोववनगा ते ॥१२०८॥ उमेशा ण नेरहण परंपरोक्वन्नगा, जे ण नेर० विग्गहगहसमावन्नगा ते ण नेरहया अणंतरपरंपरअणुववन्नगा, से सेण- १२०८॥ द्वेणं जाव अणुववन्नगावि, एवं निरंतरं जाव वेमा । अणंतरोववन्नगा ण भंते ! नेरड्या किं नेरइयाउयं पकरेंति? तिरिक्ख० मणुस्स. देवाउयं पकरेंति ?, गोयमा! नो नेरच्याउ पकरेंति जाव नो देवाज्यं पकरेंति ।। [प्र०] हे भगवन् । शुं नैरयिको अनन्तरोपपत्र (जेओनी उत्पत्तिमा समयादिकनुं अन्तर नथी, अर्थात् नारकभवना प्रथम समये उत्पन्न थयेला एवा) छे, परंपरोपपत्र (जेओनी उत्पत्तिने बे-त्रण-इत्यादि समयनी परंपरा थयेलो छे तेवा) छे, अनंतरपरंपरानुपपन्न जेओनी अनन्तर अने परम्पर-ए नन्ने प्रकारनी उत्पत्ति थयेली नथी एवा) छे? [उ०] हे गौतम ! नैरयिको अनन्तरोपपन्न रे, परंपरोपपन्न के अने अने अनन्तरपरंपरानुपपत्र पण छे. [३०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के, नैरयिको यावत्-अनन्तरपरंपरानुपपन्न के ? [उ.] हे गौतम! जे नैरयिको प्रथम समये उत्पन्न थया छे तेओ 'अनन्तरोपपन्न कहेवाय के, जे नैरयिकोनी उत्पत्तिमा प्रथम समय शिवाय द्वितीयादि समयो व्यतीत धया के तेओ 'परंपरोपपत्र' कहेवाय के अने जे नैरयिको विग्रहगतिने प्राप्त थया छे ते 'अनन्तरपरंपरानुपपन्न' कहेवाय छे, माटे ते हेतुथी हे गौतम ! नैरयिको पूर्व प्रमाणे यावत्-अनन्तरपरम्परानुपपन्न 8. त्यांमृधी कहे. ए प्रमाणे निरन्तर यावत्-चैमानिको सुधी कहे,. [प्र०] हे भगवन् ! अनन्तरोपपन्न (प्रथम समये उत्पन्न थयेला)|8| SHOKARAKHARA For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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