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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रशिः ॥११९९ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir उद्देशक ९. 18 रायगिहे जाब एवं बयासीसे जहानामए केइ पुरिसे केयाघडियं गहाय गच्छेजा, एवामेव अणगारेवि भाfavour या डियाकिञ्चहत्थगरण अप्पाणेणं उड्डुं बेहासं उत्पाएजा ?, गोयमा ! हंता उप्पाराजा, अणगारे णं भंते! भावियप्पा केवतियाई पभू केयाघडियाहत्यकिश्चगाई रुवाई विउवित्तए ?, गोयमा ! से जहानामएजुवति जुवाणे हत्थेणं हत्थे एवं जहा तहयसए पंचमुद्देसए जाव नो चेव णं संपत्तीए विवि वा वित्रिति वा विविस्संति वा, से जहा नामए केइ पुरिसे हिरनपेलं गहाय गच्छेजा, एवामेत्र अणगारेवि भावियप्पा हिरपण पेलहस्थ किञ्चगएणं अप्पाणेणं सेसं तं चैव एवं सुवन्नपेलं, एवं रयणपेलं बहरपेलं वत्थपेलं आभरणपेलं, एवं faress सुनकि चम्मकि कंबलकिडुं एवं अपभारं तंत्र भारं तउगभारं सीसगभारं सुवन्नभारं हिरन्नभारं बहरभारं, से जहानामए-वग्गुली सिया दोवि पाए उल्लंबिया २ उडूंपादा अहोसिरा चिट्ठेजा एवामेव अणगारेवि भाविपा वग्गुलीकिचगरणं अप्पाणेणं उट्टं वेहासं, एवं जनोवयवत्तव्वथा भा० जाब विउव्विस्संति वा, [प्र०] राजगृहमां (भगवान् गौतम ) यावत् आ प्रमाणे बोल्या के हे भगवन् ! जेम कोइ एक पुरुष दोरडाथी बांधेली घटिकाने लइने गमन करे, ए प्रमाणे भावितात्मा साधु दोरडाथी बांधेली घटिकानुं कार्य हस्तगत करी (वैक्रियलब्धिथी एवं रूप धारण करी) पोते ऊंचे आकाशमा उडे १ [अ०] हा गौतम ! उडे. [प्र] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार दोरडाथी बांधेली घटिकाने For Private And Personal १३ शतके उद्देशः ९ ॥११९९॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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