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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandit पास्याप्रवाति: ॥११९२॥ www.kobatirth.org उविहे मणे पन्नत्ते, जहा-सच्चे जाव असचामोसे ( सूत्रं ४९४)॥ १३श्व [प्र.] मन ए आत्मा छे, के तेथी अन्य मन छे ? [३०] हे गौतम ! मन ए आत्मा नथी, पण मन अन्य छे-इत्यादि जेमा उशा. भाषा संबन्धे का तेम मनसंबन्धे पण जाणवू, यावत्-अजीवोने मन नथी. [प्र.] हे भगवन् ! [मनननी] पूर्व मन होय, मनन समये मन होय, के मननसमय वीत्या पछी मन होय । [२०] जेम भाषासंबन्धे कड्युतेम जाणवू [प्र०] हे भगवन् ! मनननी पूर्वे | मन मेदाय, मननसमये मन मेदाय, के मननसमय वीत्या पछी मन भेदाय ? [उ.] जेम भाषासंबन्धे का छे तेम अहिं जाणवू.६ हे भगवन् मन केटला प्रकारचें कयु छ ? [उ.] हे गौतम! मन चार प्रकारचं का छे, ते आ प्रमाणे-१ सत्य, २ असत्य, [३ मिश्र] यावत्-४ असत्यामृषा-सत्य पण नहि अने मसत्य पण नहि ॥ ४९४ ॥ | आया भंते ! काये अन्ने काये?, गोयमा ! आयावि काये अन्नेवि काये, रूविं भंते ! काये अरूविं काये?, पुच्छा, 8 गोयमा! रूविपि काये अरूविपि काए, एवं एकेके पुच्छा, गोयमा! सच्चित्तेवि काये अच्चित्तवि काए, जीवेवि काए अजीवेवि काए, जीवाणवि काए अजीवाणवि काए, पुवि भंते ! काये पुच्छा, गोयमा! पुद्धिपि काए कायिजमाणेवि काए कायसमयवीतिकंतेवि काये, पुन्धि भंते ! काये भिजति पुच्छा, गोयमा ! पुष्विपि काए भिजति जाव काए भिजति ॥ कहविहे गं भंते ! काये पन्नत्ते ?, गोयमा! सत्तविहे काये पन्नत्ते, तंजहा-ओराले ओरालियमीसए बेउब्धिए वेब्वियमीसए आहारए आहारगमीसए कम्मए ।। ( सूत्रं ४९५)॥ [प्र.] हे भगवन् ! काय-शरीर आत्मा के के तेथी अन्य-आत्माथी मित्र-काय छे ? [उ.] हे गौतम ! काय आत्मा पण CREACC3 For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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