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-Thaihe
प्रसि ॥११९०॥
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एमज के' - एम कही भगवान् गौतम यावत् – विहरे छे. ॥। ४९२ ।।
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना १३ मा शतकमा छड्डा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
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उद्देशक ७.
रायगिहे जाब एवं वयासी-आया भंते ! भासा अशा भासा ?, गोयमा ! तो आया भासा अन्ना भासा, विं भंते ! भासा अरूविं भासा ?, गोयमा ! रूविं भासा नो अरूविं भासा, सचित्ता भंते । भासा अचित्ता भासा ?, गोयमा ! नो सचित्ता भासा अचित्ता भासा, जीवा भंते । भासा अजीवा भासा ?, गोयमा ! नो जीवा भासा अजीवा भासा जीवाणं भंते! भासा अजीवाणं भासा ?, गोपमा ! जीवाणं भासा नो अजीवाणं भासा, पुवि भंते! भासा भासिजमाणी मासा भासासमयवीतिकता भासा ?, गोयमा ! नो पुवि भासा भासि माणी भासा णो भासासमयनीतिकता भासा, पुत्रि भंते ! भासा भिज्जति भासिज़माणी भासा भि जति भासासमयवीतिकंता भासा भिजति ?, गोयमा ! नो पुवि भासा भिजति भासिजमाणी भासा भिजद्द मो भासासमयवीतिता भासा भिज्जति । कतिविहा णं भंते! भासा पण्णत्ता, गोषमा ! चडव्विहा भासा पण्णत्ता, संजहा- सच्चा मोसा सचामोसा असच्चामोसा (सू ४९३ ) ॥
[प्र० ] राजगृह नगरमा भगवान् गौतम यावत्-आ प्रमाणे बोल्या के, हे भगवन् ! भाषा ए आत्मा जीवस्वरूप के के तेथी
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२३ शक् उद्देशः ७ ॥११९०॥