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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रशतिः ॥१२८३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir त्यारपछी भगवान् महावीर आव्यानी आ बातथी विदित थयेला ते उदायन राजाए हर्षित अने संतुष्ट थई कौटुंबिक पुरुषोंने बोलावी आ प्रमाणे कछु के- “हे देवानुप्रियो । तमे शीघ्र वीतभय नगरने अंदर अने बहार साफ करावो" इत्यादि बधुं औपपातिक सूत्रमां कूणिक संबन्धे कछु छे तेम अहिं पण कहेतुं यावत् ते पर्युपासना करें छे. तथा प्रभावती प्रमुख देवीओ पण तेज प्रमाणे यावत्| पर्युपासना करे छे, त्यारबाद (भगवंते) धर्म कथा कही. पछी ते उदायन राजा श्रमण भगवंत महावीरनी पासे धर्मने सांभळी, अबधारी हर्षित अने संतुष्ट थई उठी उभो थाय छे, उभो थइने श्रमण भगवंत महावीरने त्रणवार प्रदक्षिणा करी यावत् नमस्कार करीने आ प्रमाणे बोल्यो- 'हे भगवन् ! ए ए प्रमाणेज छे, हे भगवन् ! ते ते प्रकारे छे' यावत् जे प्रकारे आ तमे कहो छो, परन्तु एटली विशेष छे के, हे देवानुप्रिय ! अभीचिकुमारने राज्यने विषे स्थापन करूं, अने त्यारबाद हुं देवानुप्रिय एवा आपनी पासे मुंड थईने यावत् प्रव्रज्यानो स्वीकार करूं ( भगवंते कछु के ) हे देवानुप्रिय ! जेम सुख थाय तेम करो, प्रतिबंध न करो.' त्यारबाद श्रमण भगवंत महावीरे उदायन राजाने ए प्रमाणे कछु पटले ते हर्षित अने संतुष्ट थई श्रमण भगवंत महावीरने वंदन अने नमस्कार करे छे, वंदन अने नमस्कार करीने ते अभिषेकने योग्य ( पट्ट) हस्ती उपर चढी श्रमण भगवंत महावीरनी पासेधी अने मृगवन नायना उद्यानथी नीकळीने ज्यां वीतभय नामे नगर से तरफ जवानो तेणे विचार कर्यो. तणं तस्स उदायणस्स रन्नो अयमेयारूवे अम्भस्थिए जाव समुप्पलिस्था – एवं खलु अभीग्रीकुमारे ममं एगे पुत्ते इट्ठे केले जाव किमंग पुण पासणयाए ?, तं जति पणं अहं अभीयिकुमारं रज्जे ठावेत्ता समree भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता जाव पव्वयामि तो णं अभीषिकुमारे रज्जे य जाव जणवए For Private And Personal १३ शतके उद्देशः ६ ॥११८३॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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