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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥११७५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir उद्देशक ५. नेरहया णं भंते! किं सचित्ताहारा अचित्ताहारा मीसाहारा ?, गोगमा ! नो सचित्ताहारा अचित्ताहारा नो मीसाहारा, एवं असुरकुमारा पदमो नेग्गउदेसओ निरवसेसो भागियो || सेवं भंते! सेवं भंतेत्ति ॥ ( सू ४८८ ) ।। १३-५ ॥ [प्र० ] हे भगवन् ! नैरथिको शुं सचित्ताहारी है, अचित्ताहारी छे के मिश्राहारी ( सचित अने अचित उभय आहारवाळा ) [छे ? [ ] हे गौतम! तेओ सचित्ताहारी नथी, मिश्राहारी नथी, परन्तु अचिताहारी हे. असुरकुमारो ए प्रमाणे जागवा. अहीं [ 'प्रज्ञापना' सूत्रना अख्यात्रीशमा आहारपदनों ] प्रथम नैरमिक उद्देशक समग्र कहेवो. 'हे भगवन् ! ते एमज े, हे भगवन ! ते एमज छे. एम कही भगवान् गौतम यावद् विहरे छे, ॥ ४८८ ॥ भगवद् सुधर्मस्वामी प्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना १३ मा शतकमां पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण धयो. उद्देशक ६. रायगिहे जाव एवं वयासी-संतरं भंते । नेरतिया उववज्जति निरंतरं नेरइया उबवजनि?, गोगमा । संतरंपि नेरइया उबव० निरंतरंपि नेरहया उबवज्जंति, एवं असुरकुमारावि, एवं जहा गंगेये तहेब दो दंडगा जाव संतरंपि वैमाणिया चयंति निरंतरंपि वैमाणिया चयंति ॥ (सूत्रं ४८९ ) ॥ For Private And Personal १२ शतके उद्देशः ५-६ | ॥१२७५॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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